“एक स्त्री”

“एक स्त्री”

सहज ढंग से आज मैं आप सबसे एक बात पूछना चाहती हूं।
क्या समाज के पुरुष वर्ग ने स्त्रियों को लिखने की आजादी दी है ?
नहीं ” बिल्कुल भी नहीं “‘ !

हम कुछ लिखते हैं अगर वह पतिवार्ता धर्म को पालन करता हुआ हो तो वह आप सबके नजर में बहुत ही अच्छा होता है,
उस पर आप सबके बहुत अच्छे-अच्छे कमेंट भी आते हैं ।
किंतु जहां स्त्री कुछ अपने बारे में अपने तरफ से कुछ कल्पना में ही सही अच्छे ख्वाब संजो कर लिख दिया , वह पुरुष वर्ग को अखड़ जाता है ।

यह दुर्भाग्य है हमारे समाज का कि हमारे देश के नामी गिरामी कवि, लेखक अपने पुराने प्रेम प्रसंग को मजे ले लेकर सुनाते हैं
और उसके बदले में उन्हें ढेर सारी तालियों की कड-कडाहत सुनने को मिलती है ,
वही एक स्त्री को लिखने के पहले कितना संभलना पड़ता है कितना सोचना पड़ता है।

सच तो यही है कि स्त्री के साथ ना कभी न्याय हुआ और नहीं होगा।
हमारे समाज में शुरू से जहां पुरुष को कई सदियां करने का धार्मिक रूप से भी मान्यता प्राप्त था ,
वही स्त्री को पति संग सती हो जाने का अधिकार दिया गया था ।

मुश्किल यह है कि जब भी हम कुछ लिखते हैं वह कविता हो गजल हो या आर्टिकल हो ,, उसको निजी जिंदगी से जोड़कर देखा जाता है।

यह एक तरह से स्त्री के पैरों में जंजीर डालने जैसा ही काम है ।
जरूरी नहीं हम जो लिखते हैं वह निजी जिंदगी से ताल्लुक रखता हो

पुरुष राइटर और कवि जैसा “‘अगर स्त्री के लाइफ में कोई प्रेम प्रसंग नहीं है तो क्या वह अच्छी कविता लिखने के योग्य नहीं है ?

हमें पता है कविता का मंथन तभी इंसान कर पता है जब यथार्थ से परिचित हो तो क्या यथार्थ खुद के ऊपर होना चाहिए। ?
या समाज के दूसरे इंसान आसपास का माहौल देखकर भी कविता और
लेख लिखा जा सकता है ।

हमें समझ में नहीं आता कि हमेशा से स्त्री को समझाने का प्रयास क्यों किया जाता है।

पुरुष यह क्यों भूल जाता है कि स्त्री छल कपट परपंच में पुरुष से थोड़ी कम अकलमंद हो सकती है ,पर अच्छी सोच और अच्छी समझ रखने में वह पुरुष से आगे होती है !

लक्ष्मी सरस्वती और गौरी”” की पूजा करने से कुछ नहीं होता , वह शक्तियां अदृश्य है जिनकी आप पूजा करते हो।
जो आपके घर में है वह स्त्री इन्हीं तीनों की पर्यायवाची है

अतः अपने मन को शुद्ध और पवित्र कीजिए और अपने घर या किसी और नारी के प्रति घृणा आक्रोश और कुंठा पालना त्याग दीजिए ।🙏

बहुत मुश्किल के बाद स्त्री चौखट पार करने की हिम्मत जुटा पाती है
कुछ करने के बारे में सोचती है वह चाहे लेखन क्षेत्र हो या कोई और क्षेत्र।
समाज के मजबूत स्तंभ है आप !

थोड़ी हिम्मत स्त्री को भी देने की कोशिश कीजिए ! आप सब की बहुत कृपा होगी ।
सच तो यह है की स्त्री सच कभी लिखती ही नहीं और नहीं लिख सकती है उसे सदियों से सच को छुपाने की ऐसी आदत पड़ी है जिससे निकल पाना आसान नहीं ।

और यही पुरुष समाज के पक्ष में है ।

क्योंकि स्त्री के मुख से सच पुरुष वर्ग सहन नहीं कर पाएगा। ।।। 🙏

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