कहानी: जो दिल को छू जाए

कहानी: जो दिल को छू जाए

अपने अपने संस्कार : बेटियां बाप की नाज होती हैं

समसामयिक विषय पर एक सुंदर कहानी। कहानी थोड़ी लम्बी है पर आपको अपने साथ बांधे रखने में सक्षम है

सुहाग सेज पर लाज से सिकुड़ी- सिमटी बैठी दुल्हन का घूँघट उठाते ही क्षितिज का दिल धक्क से रह गया, ‘अरे ये तो वही है…उसके जिगरी दोस्त विजय की प्रेमिका…

ये कैसी ग़लती हो गयी उससे ‘?

क्षितिज की दीदी ने सौम्या की सूरत और सीरत की इतनी प्रशंसा की थी कि क्षितिज ने भी कह दिया था ,”अगर आपको पसंद है तो मुझे उसे देखने की ज़रूरत नहीं है”। शादी भी महीने भर के भीतर हो गयी थी इसलिए क्षितिज को सौम्या से टेलीफोन पर भी बात करने का अधिक मौका नहीं मिल पाया था। वैसे भी लड़कियों के मामले मे क्षितिज बहुत ही शर्मीला था।

सौम्या उसके बचपन के दोस्त विजय के साथ मेरठ से एमबीए कर रही थी। वहीं उनकी दोस्ती हुई थी। सौम्या जाति से ठाकुर थी और विजय बनिया इस कारण सौम्या के घर वालों ने उनके प्यार की भनक लगते ही सौम्या की शादी की बात शुरु कर दी और सौम्या का कालेज छुड़ा कर उसे वापस देहरादून बुला लिया।

विजय और क्षितिज बचपन से ही एक साथ पढ़े थे। बारहवीं के बाद क्षितिज इन्जीनियरिंग करने खड़गपुर चला गया और विजय ने बरेली में ही बीएससी ज्वाइन कर लिया पर संयोग से जब दोनों मित्रों की नौकरी नोयडा में लगी तो दोनों फिर एक दूसरे के करीब आ गये।

दोस्तों के बीच तो हर तरह की बातें होती हैं। बातचीत के सिलसिले में ही एक दिन विजय ने सौम्या का भी ज़िक्र किया था और उसने क्षितिज को सौम्या की फोटो भी दिखायी थी। विजय ने क्षितिज को यह भी बताया था कि सौम्या के घरवाले इस संबंध के पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं इसलिए सौम्या ने भी मजबूरन उससे मिलना-जुलना बंद कर दिया है।

एक दिन विजय ने दूर से ही क्षितिज को सौम्या को दिखाया भी था जो किसी कार्यवश अपने पापा के साथ नोएडा आयी थी। अचानक एक दिन विजय ने सूचना दी कि उसने बैंगलोर की कम्पनी ज्वाइन कर ली है ताकि दूर जा कर नये माहौल में वो सौम्या को भूल सके।

इधर क्षितिज की दीदी को फ़ैजाबाद में अपनी सहेली की मौसेरी बहन बहुत पसंद आ गयी थी जो छुट्टियों मे अपनी बहिन के यहाँ आयी थी।

क्षितिज का आनन-फानन में ही यानि चट मंगनी पट ब्याह भी हो गया था। विजय ने छुट्टी न मिलने की असमर्थता जतायी थी। अपने खूबसूरत जीवनसाथी की रंगीन कल्पना में क्षितिज के जेहन से विजय की प्रेयसी सौम्या का नाम निकल गया था।

सौम्या का घर का नाम गुड्डी था अतः दीदी भी उसे यही नाम लेकर बुलाती थी। क्षितिज को शादी से पहले इस बात का पता ही नहीं चल पाया कि गुड्डी का असली नाम सौम्या है जो उसे विजय का कुछ ख्याल भी आ पाता। पर …

आज अचानक वो नाम इस मोड़ पर आकर यूँ याद आएगा ये तो उसने कल्पना भी नहीं की थी।

“आप… सौम्या… मेरा मतलब है….”
कुछ बोलने से पहले ही क्षितिज हकला गया।

सौम्या ने क्षितिज की आवाज सुन अपनी कंपकंपाती पलकें ऊपर उठायी तो क्षितिज को ऐसा लगा जैसे क़ायनात एक पल को ठहर गयी हो…… सौम्या वाकई में बहुत खूबसूरत थी पर इससे पहले कि उसकी आँखें उन झील सी आँखों मे डूबतीं वह संभल गया।

“मेरा मतलब है…ये शादी.. आपकी मर्जी से हुई है”?

“जी….. हां ” एक पल नाजुक होंठ थरथराए पर शीघ्र ही संयत हो गये।

“ पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं”?

“आप विजय गुप्ता को जानती हैं?” इस बार उसने बिना किसी लाग लपेट के सीधा प्रश्न किया तो सौम्या के चेहरे पर एक साथ कितने ही रंग आकर लौट गए।

“हाँ… जानती हूँ”, उसका स्वर धीमा किन्तु संयत था।

“आपने उससे शादी क्यों नहीं की”?

“क्योंकि वो…”,

“आपकी जाति का नहीं था और आपके घरवाले इस संबंध के खिलाफ़ थे… इस कारण मजबूरी….”,

क्षितिज का स्वर ज़रा ऊँचा हुआ तो सौम्या की घबरायी दृष्टि दरवाज़े की ओर उठ गयी….’ कहीं कोई बाहर खड़ा न हो’, और क्षितिज को भी अपनी ग़लती का भान हो गया।

“जी.. आपने ठीक समझा… पर मजबूरी में नहीं…”, सौम्या की बात पूरी होने से पहले ही क्षितिज का धैर्य जवाब दे गया।

“विजय मेरे बचपन का दोस्त है… उसने आपके बारे में बताया था और एक बार दूर से दिखाया भी था.. शादी से पहले अगर मैं एक बार आपको देख लेता तो फिर मुझसे इतनी बड़ी भूल नहीं होती” ।

क्षितिज के स्वर में पाश्चाताप छलक उठा तो सौम्या परेशान हो उठी।

“शायद ईश्वर की यही मर्ज़ी थी”

“नहीं…” क्षितिज हल्के से चीख उठा,

“मैं अपने दोस्त को क्या मुँह दिखाऊँगा…. मैं विजय के साथ दगाबाजी नहीं कर सकता”।

“पर अब हम क्या कर सकते हैं”, सौम्या धीरे से बोली तो अचानक क्षितिज ने उसकी आँखों मे झाँका।

“सच बताना.. आप विजय को अभी भी प्यार करती हैं? उससे शादी करना चाहती हैं”? क्षितिज की बातें सुन कर जैसे औंधे मुँह गिरी सौम्या।

“ये क्या कह रहे हैं आप !!… मेरे माता पिता ने मेरी शादी आपसे की है… ये सब सोचना और बोलना भी अब पाप है मेरे लिए”।

“देखो सौम्या… ये पुराना ज़माना नहीं है कि लड़की को जिस खूँटे में बाँध दिया , ज़िंदगी भर वह उसी से बँधी रहे , चाहे उसे पसंद हो या न हो… अब समय बदल गया है… तुम पढ़ी-लिखी हो…

मैं तुम्हें तलाक़ देकर विजय से तुम्हारी शादी करवा दूँगा”, क्षितिज ने जैसे निर्णय ले लिया पर सौम्या आशा के विपरीत सख़्त हो उठी।

“कभी नहीं…. मैं अपने माँ-पापा को बहुत प्यार करती हूँ और मैं ये भी जानती हूँ कि वो हमेशा मेरा भला ही सोचेंगे। इसलिए मैं उन्हें ज़रा भी दु:ख देने की बात सोच भी नहीं सकती”।

अचानक क्षितिज को कभी विजय से हुई बातचीत याद आ गयी। विजय की माँ भी इस संबंध से खुश नहीं थीं पर उसने कहा था,’ सौम्या तैयार हो तो हम कोर्ट मैरिज कर सकते हैं… और एक बार शादी हो जाएगी तो मम्मी भी उसे बहू मान ही लेंगी। फिर मिंया बीबी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी”, कह कर वो हँस दिया था।

कितना अंतर था दोनों की विचार धारा में…या शायद संस्कारों में ? जहाँ सौम्या अपने माँ-बाप को दु:ख पँहुचाने की बात सोच भी नहीं सकती थी , वहाँ विजय सिर्फ अपनी ख़ुशी देख रहा था। क्षितिज सौम्या की साफ़गोई से भी बहुत प्रभावित हुआ था।

“हम कल इस बारे में बात करेंगे… बहुत थक गया हूँ… तुम भी सो जाओ”, कह कर क्षितिज वहीं पड़े दीवान पर पसर गया और सौम्या चुपचाप पलंग पर लेट गयी जहाँ उसके सपनों की तरह फूल भी मुरझाने लगे थे।

दूसरे दिन घर में सब लोग उन दोनों से चुहलबाज़ी करते रहे पर किसी को असलियत की भनक भी नहीं थी। रात में कमरे मे पँहुचते ही क्षितिज ने दीवान पर ही तकिया रख लिया, “सौम्या मुझे कुछ समय दो…तब तक बेहतर है हम अलग रहें”।

घर से मेहमान विदा होते ही उसने सबसे पहले विजय को फोन किया।

“अरे.. तुझे अपनी नयी नवेली से इतनी फुरसत मिल गयी कि तू अभी से मुझे फोन कर रहा है”, विजय ने हँसते हुए पूछा,”हाँ… और ये तो बता भाभी कैसी हैं… तेरे सपनों की चौखट में तो फिट बैठी न? डेटिंग के इस युग में तूने बिना देखे शादी कर ली”।

“वह बहुत खूबसूरत है.. मेरी कल्पना से भी परे”, क्षितिज की आवाज़ में संजीदगी थी जिसे महसूस कर विजय बेचैन हो उठा।

“तो फिर क्या हुआ… क्या उसका कहीं.. इश्क विश्क…”

“जानते हो विजय जब मैंने उसका घूँघट हटाया तो वो चेहरा कौन सा था”?

“पहेली मत बुझा… साफ़ बता..”, विजय थोड़ा उकता गया।

“सौम्या का….”, क्षितिज का स्वर बर्फ़ सा ठंडा था पर विजय का पाँव जैसे अंगारे पर पड़ गया।

“ये क्या मज़ाक है…”,

“मज़ाक नहीं… यही सच्चाई है… और मैंने तुमसे यही पूछने के लिए फोन किया है कि अब आगे मैं क्या करूँ… मैंने उसकी उँगली तक नहीं छुई है”।

“मतलब…”?

” क्षितिज….”, इतना ही कह पाया विजय। इस अप्रत्याशित स्थिति की तो उसने भी कल्पना नहीं की थी।

“विजय… तू कहे तो मैं उसे तलाक देकर उसकी शादी तुझसे करवा देता हूँ”।

“पर उसके घरवाले…”? विजय असमंजस में था

“उन्हें मैं मना लूँगा… बस तेरी हाँ चाहिए।”

“मैं तो पहले ही मंदिर में भी शादी को तैयार था… पर तू पहले सौम्या से पूछ ले।”

“ठीक है”, कह कर क्षितिज ने फोन काट दिया।

रात में बिना किसी लाग लपेट के उसने सौम्या से सीधा प्रश्न किया,

“तुम विजय से शादी करोगी?”

“नहीं….” आशा के विपरीत सौम्या ने भी सीधा उत्तर दिया तो क्षितिज ने उसके दोनों कंधे पकड़ उसकी आँखों में झांकते हुए उससे सच उगलवाना चाहा,

“क्या तुम उसे प्यार नहीं करतीं”?

“देखिए… हम अच्छे दोस्त थे एक दूसरे को पसंद भी करते थे पर ये दोस्ती प्यार में परवान चढ़ती इससे पहले ही मुझे घर वालों ने कालेज से मुझे वापस बुला लिया और मेरी शादी आपसे तय हो गयी”, सौम्या की बात में सच्चाई झलक रही थी।

“पर तुम क्या चाहती थी “? क्षितिज अभी भी दुविधा में था।

मेरे माँ-बाप का आदेश मेरे लिये सर्वोपरि है। मैं उनकी बेटी हूँ और अगर मैं उनको धोखा दे सकती हूँ तो फिर मैं किसी को भी धोखा दे सकती हूँ ”, सौम्या का स्वर थोड़ा सख़्त हो गया पर क्षितिज अभी भी संतुष्ट नहीं था।

” पर.. कहीं तुमने सिर्फ़ उनका मन रखने के लिए तो मेरे साथ सात फेरे नहीं लिए”?

“नहीं… क्योंकि मुझे मालूम है कि मैं एक बार भावनाओं मे बह कर गलत कर सकती हूँ पर मेरे माँ-बाबूजी हमेशा मेरे लिए अच्छा करेंगें। मेरा विजय से दोस्ती के अलावा कभी कोई संबंध नहीं रहा पर फिर भी अगर आपको शक हो तो आप मुझे बेशक सजा दे सकते हैं पर भगवान के वास्ते तलाक का नाम मत लीजिएगा”, सौम्या की आँखों में आँसू भर आए तो क्षितिज का मन पसीज गया।

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है , तुम आराम से सो जाओ”।

रात भर वह ऊहापोह में रहा पर सुबह उठते ही उसने निर्णय ले लिया था। सौम्या की आँखों में उसे सच्चाई नज़र आयी थी। उसने पलंग पर नज़र डाली। पलंग खाली था.. पता नहीं सौम्या कब उठ कर बाहर चली गयी थी।

नहा धो कर सौम्या जब चाय ले कर आयी तो क्षितिज उसे देखता रह गया। पीली साड़ी में जैसे साक्षात बसंत उतर आया था।

“चाय पी कर मैं तैयार होता हूँ.. मंदिर चलना है”, क्षितिज ने चाय पकड़ते हुए कहा तो सौम्या की प्रश्न भरी दृष्टि उसकी ओर उठ गयी।

“ईश्वर का आशीर्वाद ले कर ही तो हमें अपना दाम्पत्य जीवन शुरू करना है”, क्षितिज ने मुस्कुरा कर कहा तो सौम्या का चेहरा खुशी और लाज के सिंदूर से नहा उठा। उसके संस्कारों की कीमत उसे मिल गयी थी।

नोट – यह रचना मुझे एक पेज पर कहीं पढ़ने को मिला था जिसे मैंने सजा संवारकर आपको परोसा है। आशा है शायद आपको अच्छी लगी हो। अगर अच्छी लगी हो तो आपका आशीर्वाद चाहूंगा।

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