काकी का परिवार

काकी का परिवार

काकी का परिवार

सुरभि को रात्रि में ही लेबर पेन शुरू हो गये, यूँ तो मां अभी दो दिन पहले ही कह गयी थी कि बेटा संदीप तू चिंता मत करना,मैं दो तीन दिन में ही गावँ में वहां की व्यवस्था करके आ जाऊंगी।

माँ थी नही,और सुरभि के पेन शुरू हो गये, संदीप नर्वस सा हो गया।माँ होती तो सब संभाल लेती,वह कैसे करेगा?सोच सोच कर संदीप परेशान था।फिर भी उसने अपनी समझ से कुछ जरूरी चीजें एक बैग में रखी जो अस्पताल में काम आ सकती थी।

सुरभि दर्द के मारे चीखने लगी थी।उसकी समझ नही आ रहा था कि वह अपनी कार भी बाहर कैसे निकाले सुरभि को इस बीच कौन संभालेगा?

सुरभि के कराहने की आवाज सुनकर पड़ौस से कृष्णा काकी दौड़ी आयी,आते ही सारी स्थिति को समझ उन्होंने सुरभि को संभाल लिया।

कृष्णा काकी हमारे साथ ही हॉस्पिटल गयी,सारी रात वही रही,डिलीवरी नॉर्मल ही हुई,पर अगले दिन मां के आने तक कृष्णा काकी सुरभि के साथ ही डटी रही।मां के आने के बाद काकी अपने घर गयी।सुरभि के हॉस्पिटल से घर आने के बाद भी कृष्णा काकी सुरभि के हाल चाल पूछने रोज ही घर आती।

संदीप नोट कर रहा था कि कृष्णा काकी के इतना सहयोग करने के बाद भी माँ का व्यवहार काकी प्रति रूखा सा है।वे काकी से बात भी बहुत कम करती,बस हाँ- हूँ तक सीमित रहती।मां का यह व्यवहार संदीप के गले नही उतर रहा था,

माँ ऐसा क्यों कर रही है भला?एक दिन संदीप के पूछने पर माँ बोली अरे संदीप तू भोला है,तू ऐसी औरतों को नही समझता।देख लेना इस अहसान के एवज में ये जो तेरी काकी है ना, कुछ न कुछ डिमांड रख देगी,लाख पचास हजार की,कहेगी उधार चाहिये पर तुझे वापस मिलेंगे बिल्कुल भी नही।

संदीप ने कोई उत्तर नही दिया,पर उसे ऐसा काकी को देख लग नही रहा था।कई दिन बाद की घटना हुई कि सुरभि की देखभाल में भागमभाग के चक्कर मे माँ रपटकर गिर गयी,जिससे उनके पैर की हड्डी में हल्का सा बाल आ गया।

डॉक्टर ने प्लास्टर बांध दस दिनों के लिये बेडरेस्ट बता दिया।ऐसी विषम परिस्थिति में कृष्णा काकी ही काम आयी।कृष्णा काकी ने पूरा घर संभाल लिया था।

अब मां को भी समझ आ गया था कि उसकी कृष्णा काकी के बारे में धारणा गलत थी।उस दिन कृष्णा काकी बता रही थी कि उसका एकलौता बेटा तो अमेरिका में बस गया है,

मुझे ये घर दे गया है और मुझे ढेर सारे रुपये भेजता है,पर बता भेना उन रुपयों का मैं क्या करूँ,जब बेटे को भी देख न पाऊं पोते को गोद मे ले न सकूं,मुझ अभागी को मौत भी नही आती।

जब से इस संदीप और सुरभि को देखा है ना,बहनजी मुझे इनमें अपना बेटा और बहू ही दिखाई देते हैं और अब तो इन्होंने पोता भी दे दिया है।कृष्णा काकी की कहानी सुन मां की आंखों से पानी बह रहा था,

उन्होंने काकी के हाथ को कस कर पकड़ लिया था,सुरभि ने बिस्तर से उठकर अपना सिर कृष्णा काकी की गोद मे रख लिया था।

संदीप ने आगे बढ़कर काकी के दूसरे हाथ को दबा कर अपने माथे से लगा लिया,मानो मां की पहली सोच की माफी मांग रहा हो।कृष्णा काकी ऐसी खुश थी – ऐसी खुश थी,जैसे अमेरिका से उनका बेटा बहू और पोता लौट आये,

गले न उतरना

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