कामवासना की जंजीर

काम वासना की जंजीर

परवाने को शमा पर जलकर
कुछ तो मिलता होगा
यूं ही मरने के लिए कोई
मोहब्बत नहीं करता.

कामवासना ऐसी है जो दोस्ती को भी नहीं नहीं छोड़ती ?

जवान महिला या जवान खूबसूरत लड़की की दोस्ती किसी पुरुष या लड़के से हो जाए कभी कभी होता है न ऐसा ऑफिस में या कॉलेज में या कहीं और साथ रहते रहते एक रिश्ता बन जाता है उसे हम दोस्ती का नाम दे देते हैं ।

जब भी वह दोनों साथ में बैठते हैं, चाय पीते हैं, खाना खाते हैं तो एक साथ पाकर कभी कभी कामवासना दोस्ती पर भी हावी होती दिखाई देती है। क्योंकि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है लेकिन दोनों चूंकि दोस्ती के रिश्ते में होते हैं तो एक दूसरे से कुछ कह तो सकते नहीं हैं।

लेकिन फिर ये दोस्ती का रिश्ता कम चल पाता है और आगे चलकर प्यार में बदल ही जाता है। अर्थात कहने का मतलब ये है कि एक लड़का और एक लड़की दोस्त कहते भले ही हैं लेकिन वह दोस्त बनकर रह नहीं पाते हकीकत में ये फिल्मों में हो सकता है सिर्फ क्योंकि सबके साथ में तो फिर भी वह अपने आपको नियंत्रित कर सकते हैं

लेकिन जब भी दोनों अकेले पड़ जाएं कभी कभी तो फिर बात तो वही हो गई न कि आखिर कुआ के घाट पर प्यासा कौन रह सकता है। कहने का मतलब है कि महिला मित्र पुरुष बनाते ही इसलिए हैं कि यह आगे उससे शारीरिक संबंध बना सकें।
मेरे कहने का मतलब ये हुआ कि दोस्ती दो सामान लिंगों में ही सही हो सकती है।

यदि विपरीत लिंगों में होगी तो कोई चाह कर भी कामवासना को रोक नहीं सकते चाहे वह पुरुष हो या स्त्री।

अभी कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोग पोस्ट पर यही कहते नजर आयेंगे की जरूरी नही है की कामवासना के लिए ही महिला या पुरुष से दोस्ती की जाती है,तो उनको मैं एक ही बात बोलना चाहूंगा की अगर 100 लोगों पर यह परीक्षण किया जाए तो 90 ऐसे मिलेंगे जिनकी दोस्ती में आगे चलकर कामवासना हावी हो गई होगी।

बस यही कहना है कि महिला मित्र सिर्फ बोल सकते हैं लेकिन असल में वह रिश्ता प्यार में बदल ही जाता है अधिकतर कुछ मामलों को छोड़कर।

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कामवासना #पुरुष #महिला #दोस्ती #प्यार #समाज #समय

तुम्हारी उस इक छुअन में मैंने तमाम उम्र गुजार दी
उस प्यार के एहसास में मैंने जिंदगी नीलाम कर दी
मेरा रोम रोम पुलकित हो उठा तुम्हारी उस छुअन में सिहर सी जाती हूँ जब याद करती हूँ उस पल को में
तेरा वो मेरे माथे को चूमना हमारे प्यार की निशानी थी
ख्वाब था या हकीकत पता नहीं पर प्यार की कहानी थी
तेरा मिलना मेरे नसीब नहीं था बस यही दुख की बात है
जुदाई मुकद्दर ही सही पर हम आज भी तेरे इंतज़ार मे है

5 साल से भाग रहा था मैं अपनी बेटी के लिए लड़का तलाशने। रस्ता चलते चाहें जो बता देता मुझे कि उस गांव में है एक लड़का बिटिया के लायक एक बार देख लो तो अगले दिन ही निकल पड़ता। कहीं लड़के में कुछ कमी दिखती तो कहीं घर परिवार मीठ मच्छी दारू वाला निकलता, कहीं मांग रख देते ज्यादा तो कहीं हमारी बिटिया के बराबर पढाई ही न मिलती।
इस साल मिल गया हमारी बच्ची के लिए घर। और मुझे विस्वास भी बहुत था कि इस बार भोले बाबा जरूर हमारी मनोकामना पूरी कर देंगे। बहुत धूम धाम से कर रहे हैं अपनी गुड़िया को व्याह।😊

ये लो साहब कार्ड और आना जरूर बिटिया को अपना आशीर्वाद देने। आप आओगे हमारे आंगन में तो हमारे भाग्य खुल जाएंगे, बिटिया को आप जैसे बड़े लोगों को आशीर्वाद मिल जायगो ( उन्होंने मुझे एक पीले रंग का कार्ड दिया मुस्कराते हुए बड़ी आशा भरी नजरों से हाँथ जोड़ते हुए, जिसपर न लिफ़ाफ़ा था और न कोई धागा, क़ीमत यही कोई 3 या 4 रुपए रही होगी )

पूरे 100 लोगों को कार्ड बांटे हैं साहब, अगर सब जने आ जाएंगे तो बहुत अछो लगेगो। और हां आप सबके लय रुकन के लय खटिया और पंखा अलग से व्यवस्था कर रहे हैं। चार पंखा बरायत के लय और चार पंखा हमारी तरफ के रिश्तेदारों के लय लगवाए रहे हैं, हवा ही हवा हो जाएगी😊। पूरी रात जननेटर चलबाउंगो। ( वो पिता कार्ड बांटते हुए बहुत खुश था, जो कल अपनी बेटी के बिना घर में अकेला सोएगा, जिसको दवाई गोली देने वाली गुड़िया चली जाएगी)

अच्छा हां, भाई साहब सुनो, हमने लड़की के लय एक नथनी एक लर एक मंगलसूत्र पायलें सब तरह के वर्तन पंखा सिंगल बेड सिंगारदानी और एक बड़ो बक्शा कर दओ है। मतलब अपनी तरफ से सब कुछ कर दओ है कपड़ा लित्ता के अलावा, कोई कमी नाय राखी। बस बिटिया दुखी नाय रहाय बस। अच्छा सुनो साहब आना जरूर, हमारी बालकी की किस्मत खुल जाएगी अगर आप हमारे द्वारे हमारी बिटिया को आशीर्वाद देने आ जाओगे साहब तो। ( हाँथ जोड़ते हमारा विस्वास लेते मुस्कराते बाबा को देख मैं सहम सा रहा था )

गांव से कल एक दावत आई थी। समाज उन्हें मजदूर कहता है लेकिन जितनी खुशी उनके चेहरे पर कार्ड देते हुए हमने महसूस की, उनसे अमीर कोई नहीं लगा। उन्होंने जितनी मेहनत अपनी लड़की की खुशियों के लिए लड़के को ढूंढने में की पांच साल, उससे कहीं ज्यादा आज दावत बांटते हुए कर रहे थे। ऐसे सबकुछ गिना रहे थे बेटी को देने वाली चीजें जैसे मानों पिता ने तो सबकुछ दे दिया अपनी बिटिया को शायद अब उसे कोई दिक्कत नहीं होगी ससुराल में।

पिता सबकुछ भी क्यों न देदे अपनी बेटी को, अपने बाबुल के आंगन सी खुशी कहां मिल पाती है। आपको सच बताऊं तो मुझे कार्ड देते वक़्त जब वो आशाएं लिए हमारे सामने बैठे थे। उनकी पसीने से भीगी पीठ और झुर्रियों दार चेहरे पर खुशी देख मैं बिल्कुल यही महसूस कर रहा था कि लड़के वाले पक्ष के सामने हम जैसे रिश्तेदारों को बैठाकर कितना खुश होंगे न ये बाबा। जैसे मानों देवलोक से ईश्वर के देवदूत आए हों वहां।

सच में, गरीब अपने से ज्यादा पैसे वालों को जिनके वो सम्पर्क में होता है, भगवान मानता है। फिर चाहें उसे वो अमीर कभी चाय तक को न पूछे, लेकिन उसके घर यदि अमीर रिश्तेदार जानपहचान वाला पहुंच गया तो सब कुछ लुटाने को तैयार हो जाता है।

न जाने कैसे कैसे कितनों के आगे हाँथ पैर जोड़कर लाख दो लाख रुपए इकट्ठा कर वो अपनी बेटी की शादी की तैयारी में लगा है। जिसमें बेटी के भविष्य को संवारने के लिए तो दे ही रहा है, साथ ही हम सबको बैठने खाने का इंतजाम भी कर रहा है।
वाक़ई पिता एक विशाल शक्ति का नाम है। आप सभी से एक गुजारिश है, गरीब की शादी में दावत हो या न हो लेकिन कन्यादान में जरूर पहुंचें।

🙏🙏❣️ और उससे जरूर कहें कि आपने बहुत अच्छी व्यवस्था की है, बहुत अच्छा खाना बनवाया है। ❤️ 🙏✍️

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