
मन थकता नही, तन रुकता नही
करता जाता है मन मानी
बलखाये कमरिया उछले जोबन
अल्लड़ हुई मेरी जवानी
कसके जो बाँधु चोली की डोरी
लोग कहे है लगती ये रानी
छाती बडी है संभलती न अब
हो जाती है परेशानी
अधखुला तन है चंचल मन है
मेरे हुस्न की यही कहानी
छेड़े कोई जो मुझे हमेशा तो
हो जाती हूँ उसकी दीवानी
❤❤❤
कुंवारी मां
“कहाँ जा रही हो?” विदा हो चुकी नवविवाहित दुल्हन सुषमा ने जब अचानक कार की खिड़की खोली तो दूल्हा निखिल तपाक से बोला। ” मैं मेरा बच्चा रोता छोड़ आयी, उसे चुप करा आऊं।” आंसू पौंछती हुई सुषमा ने जवाब दिया और निखिल की सहमति का इंतज़ार किये बिना गाड़ी से निकल कर घर की और दौड़ पड़ी।
” बस! और कर ले ऑनलाइन शादी और वो भी इतनी जल्दी में… अब भुगत बच्चू सारी उम्र।” गाड़ी के पास खड़े निखिल के पापा निखिल पर एकदम बरस पड़े। निखिल भी पापा की बातों का जवाब दिए बिना सुषमा के पीछे दौड़ पड़ा। तेज़ कदमों से चलती सुषमा के पास आकर कदम चाल मिलाता हुआ निखिल गुस्से में बोला,” सुषमा, क्या बकवास है ये? ” सुषमा ने रोते हुए हुए निखिल की तरफ देखा और निरंतर घर की ओर चलती गयी।😒😒😒😒😒😒😒
सुषमा सीधी घर के आखरी कमरे में पहुंच गई जहां हल्के प्रकाश में सिर्फ एक आकृति खड़ी दिखाई दे रही थी। दीवार की तरफ मुंह किये हुए बुजुर्ग एक हाथ में शादी के हिसाब किताब का बैग पकड़े हुए खड़ा था और दूसरे हाथ से अपने आंसू पौंछ रहा था। मैले सफेद कुर्ते और कोल्हापुरी चप्पल में सफेद दाढ़ी वाले रोते हुए शख्श से सुषमा पीछे से जा कर चिपक गयी और बस एक ही शब्द बोली,” बाबा”।🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
कमरे के किवाड़ के पास खड़े निखिल की आंखों के किनारे गीले हो गये। निखिल वहां से वापस मुड़ा तो पीछे पीछे आये निखिल के पापा ने जलता सवाल दागा,” कहाँ है वो? ” निखिल रूमाल से आंखें पौंछता हुआ बोला,” पापा, बच्चा चुप कराने में आपकी बहू को थोड़ा टाइम लगेगा। आइये, तब तक हम चाय पीते हैं।” निखिल के पापा की आंखें अब हैरानी से फटी की फटी थी।

प्रेम लकीर नहीं
जिसे लांघ कर
आगे बढ़ जाएँ…
प्रेम आकाश है
हमेशा साथ चलता है…
चाहे जितनी भी
छतें खड़ी कर दो
अपने और आकाश के बीच…
आकाश हमेशा है
प्रेम हमेशा रहता है…
एक ससुर ऐसे भी
“बेटा तू बच्चों का नाश्ता बना इतने मैं इन्हे तैयार कर देता हूं फिर तू वत्सल का लंच लगा दियो मैं इन्हे बस तक छोड़ आऊंगा!” नरेश जी अपनी बहू दिव्या से बोले।
” नहीं नहीं पापा जी मैं कर लूंगी आप बैठिए मैं बस अभी आपकी चाय बनाती हूं!” दिव्या बोली।
” अरे बेटा बन जाएगी चाय मुझे कौन सा कहीं जाना है तू पहले इन सब कामों से फ़्री हो तब तक मैं इन शैतानों को रेडी करता हूं!” नरेश जी हंसते हुए बोले।
दिव्या हैरान थी जो पापा जी मां के रहने पर एक ग्लास पानी खुद नहीं लेते थे आज उनके जाने के पंद्रह दिन बाद ही उसकी हर काम में मदद कर रहे हैं।
असल में दिव्या के परिवार में दिव्या के पति , सास – ससुर और दो बच्चे छः साल का काव्य और तीन साल की आव्या थे। जबसे दिव्या शादी होकर आई उसकी सास ने उसे बेटी की तरह रखा घर के कामों में सहयोग दिया यूं तो दिव्या के ससुर नरेश जी भी बहुत प्यार करते थे उसे पर उसने कभी अपने ससुर को खुद से कोई काम करते नहीं देखा।अभी पंद्रह दिन पहले दिव्या की सास का अचानक हृदय गति रुकने से देहांत हो गया था तब बच्चो की छुट्टियां थी और दिव्या के पति वत्सल ने अवकाश लिया था आज सभी वापिस से जा रहे थे। क्योंकि वत्सल का ऑफिस दूर था तो उसे जल्दी निकलना पड़ता था। और नरेश जी रिटायर हो चुके थे तो घर में ही रहते थे।
” लाओ बेटा बच्चो का दूध दो !” नरेश जी बच्चों को तैयार करके बोले।
बच्चों का दूध और टिफिन दे दिव्या वत्सल का खाना पैक करने लगी साथ साथ उसका नाश्ता भी तैयार कर रही थी और एक गैस पर चाय चढ़ा दी उसने।
” लो वत्सल तुम्हारा नाश्ता पापाजी आपकी चाय… आप नाश्ता तो अभी देर से करोगे!” दिव्या बोली।
” दे ही दो बेटा तुम्हारा भी काम निमटे वरना दुबारा रसोई चढ़ानी पड़ेगी!” नरेश जी बोले।
नरेश जी रोज दिव्या की ऐसे ही मदद करने लगे दिव्या को कभी कभी बुरा भी लगता और वो मना करती पर वो प्यार से उसे कहते कोई बात नहीं बेटा।
“सुनो आप पापाजी से बात करो ना कोई बात है जो उन्हें परेशान कर रही!” एक रात दिव्या वत्सल से बोली।
” क्यों कुछ हुआ क्या पापा ने कुछ कहा तुम्हे!” वत्सल बोला।
” नहीं पर जो इंसान एक ग्लास पानी भी नहीं लेता था खुद से वो मेरे साथ इतने काम कराए कुछ तो गड़बड़ है!” दिव्या बोली।
“अरे तुम्हे कोई परेशानी हो तो तुम खुद पूछ लो ना !” वत्सल बात टालता हुआ बोला।
वत्सल तो सो गया पर दिव्या को नींद नहीं आ रही थी वो उठ कर बाहर आई तो देखा पापा के कमरे की लाईट जल रही है।
” पापाजी आप सोए नहीं अब तक तबियत तो ठीक है आपकी!” दिव्या कमरे का दरवाजा खटखटा कर बोली।
” अरे दिव्या बेटा अंदर आ जाओ … क्या बात है तुम इस वक़्त जाग रही हो आओ बैठो!” नरेश जी बोले।
” मुझे नींद सी नहीं आ रही थी तो सोचा थोड़ा टहल लूं पर आप क्यों जगे हैं!” दिव्या बोली।
” बस ऐसे ही बेटा मुझे भी नींद नहीं आ रही थी!” नरेश जी बोले।
” पापा आपसे एक बात पूछनी थी!” दिव्या हिचकते हुए बोली।
” हां बेटा बोली संकोच क्यों कर रही हो!” नरेश जी बोले।
“पापाजी मुझसे कोई गलती हुई है क्या आप मुझसे नाराज़ हैं या मेरी कोई बात बुरी लगी आपको ?” दिव्या बोली
” नहीं तो बेटा पर क्यों पूछ रही तुम ऐसा!” नरेश जी हैरानी से बोले।
” पापा जी इतने दिन से देख रही हूं आप मेरी हर काम में मदद करते हैं जबकि मम्मीजी के सामने आप एक ग्लास पानी भी नहीं लेकर पीते थे!” दिव्या सिर नीचा कर बोली।
” हाहाहा तो तुम्हे लगा मैं तुमसे नाराज़ हूं… देखो बेटा जब तक तुम्हारी सास थी वो तुम्हारी मदद को थी अब वो नहीं है तो मुझे दोहरी जिम्मेदारी निभानी है मेरे लिए जैसे वत्सल वैसे तुम जैसे मैं उसकी सुख सुविधाओं का ध्यान रखता हूं तुम्हारा रखना भी मेरा फर्ज है!” नरेश जी प्यार से बोले।
,” पापा जी!” दिव्या आंखों में आंसू भर केवल इतना बोली।
” हां बेटा अब मां और बाप दोनों की जिम्मेदारी मुझे उठानी है तुम्हे सुबह इतने काम होते वत्सल भी मदद नहीं कर पाता है तो मेरा फर्ज है कि मैं अपनी बेटी की थोड़ी मदद कर उसकी कुछ परेशानी तो हल कर सकूं, समझी बुद्धू मैं नाराज़ नहीं हूं तुमसे!” नरेश जी प्यार से दिव्या का सिर पर हाथ फेरते बोले।
दिव्या अपने ससुर के गले लग गई आज उसमे अपने ससुर में अपने मृत पिता नजर आ रहे थे। सच में पिता पिता ही होता फिर चाहे ससुर के रूप में क्यों ना हो।