खुशी का फंडा ###

खुशी का फंडा ###

मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वह वह दिखाना नहीं चाहता जो वह वास्तव में होता है इस डर से कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे ,समाज में उसकी बेइज्जती हो जायेगी और ऐसा सोचते सोचते वह अपने बेचारे एक छोटे से दिल और दिमाग में इतना कचरा इकट्ठा कर लेता है कि दिल भी कांपकर कराह उठता है ।


अगर हम खुली किताब की तरह लोगों से मिलें अपनी बातें अपनों के साथ शेयर करें (भले ही दुःख की ही क्यों नहीं हो )तब दिल पर शायद इतना जोर न पड़े।


अहम और झूठी शान ये दोनों ही परेशानी की मुख्य जड़ें होती हैं ।इन्ही के कारण हम भीतर ही भीतर घुटते हैं सोचते हैं अगर हम अपने दुख लोगों को बताएंगे अपनी कमजोरियां दूसरों के सामने लाएंगे तब लोग हमारा मजाक उड़ाएंगे लेकिन मेरे ख्याल से खुद भीतर ही भीतर घुटते रहने से अच्छा है कि खुलकर रोया जाए और हां हम खुश तब ही रह सकते हैं जब दूसरों का मजाक उड़ाने के बजाय खुद का मजाक उड़ाएं और खिलखिलाकर हंसे।


शायद उसके लिए भी लोग आपका मजाक उड़ाएं ,कोई फर्क नहीं पड़ता । खुश रहने का शायद ही इससे आसान रास्ता और कोई हो ।


बिलकुल बच्चों की तरह जब तक भीतर का बच्चा जिंदा रहेगा तब तक आपको कोई दुख दुखी नहीं कर सकता ।

अकेलेपन में जो ख़ुश हैं ,वो मुरझाया नहीं करते
ग़ज़ल में ख़ुद को लिखते ,दर्द भी ज़ाया नहीं करते

बुरी आदत है ये मेरी,जो दिल में है ज़ुबाँ पे है ,
यही कारण है मुझपे अपने भी साया नहीं करते

हाँ,, रक्खो नाक भी ऊंची ,भले नुकसान होता हो
जहाँ इज़्ज़त नहीं मिलती ,उधर जाया नहीं करते

अग़र सब पा लिया तुमने,बचा मक़सद क्या जीने का?
अधूरी ख्वाहिशें रख लो, यूँ सब पाया नहीं करते

मिलेंगे फूल बगिया में ,ज़रा मौसम बदलने दो
कटीले फूल राहों के ,,यूँ घर लाया नहीं करते।।

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