नारी का करे सम्मान

पति ने अपने #बिस्तर पर #नींद आ जाने से पहले, अपने पास मे सोई, अपनी #पत्नी के चेहरे को गौर से देखा, उसकी प्यारी सी और नर्म व नाज़ुक शक्ल पर काफी देर गौर करता रहा, फिर पति ने अपने आप से कहा कि ….
कितनी महान होती है ये महिलाये भी,
बरसो अपने बाप की मुहब्बत के साये तले अपने घरवालो के साथ पलती बढती है, और अब कहा एक अंजान शख्स के साथ आकर सोई हुई है, और एक अंजान शख्स की खातिर उसने अपने घरबार मा बाप छोडा, माता पिता का लाड प्यार और नाज नखरा छोडा, अपने घर की राहत और आराम को छोडा, और ऐसे शख्स के पास आई है जो उसे अच्छे की तलकीन और बुराई से रोकता है, अपने पति की दिल जान से सेवा करती है, उसका दिल बहलाती है, उसको राहत व सुकून देती है, ताकि बस उसका भगवान उससे खुश हो जाए, और बस इसलिए के ये उसके लिए उसके संस्कारों का हुक्म है।
फिर मैंने अपने आप से सवाल किया:🤔
कैसे होते है कुछ लोग?
जो बेचारी और बेरहमी से अपनी पत्नियों को मार पीट लेते है, बल्कि कुछ तो धक्के देकर अपने घर से बाहर निकाल देते है, उन्हे वापस अपने मा बाप के उस घर छोड देते है जो वो उसके खातिर छोडकर आई थी।
कैसे होते है कुछ लोग?🤔
जो पत्नियों को घर मे डाल कर दोस्तो के साथ निकल खडे होते है, होटलो मे जाकर वो कुछ खाते पीते है, जिसका उनके घर मे तसव्वुर भी नही किया जा सकता।
कैसे होते है कुछ लोग?
जिनके बाहर उठने बैठने का वक्त है , परंतु उनके अपने बीवी बच्चो के पास उठने बैठने का वक्त उनके पास ज्यादा नही होता है।
कैसे होते है कुछ लोग?
जो अपने घर को अपनी पत्नी के लिए जेल बनाकर रख देते है, ना उन्हे कभी बाहर अंदर ले जाते है, और ना कभी उनके पास बैठकर उनसे दिल का हाल सुनते सुनाते है।
कैसे होते है कुछ लोग?
जो अपनी बीवी को ऐसी हालत मे सुला देते है कि उसके दिल मे किसी चीज की तडप और चुभन होती है, उसकी आंखो मे आंसू थे और उसका गला किसी कहर से दबा जा रहा था।
कैसे होते है कुछ लोग?
जो अपनी राहत और अपनी बेहतरी के लिए घर छोड कर बाहर निकल खडे होते है, पीछे मुडकर अपनी बीवी बच्चो की खबर तक नही लेते, कि उन पर उनके बाहर रहने के अरसे मे क्या गुज़रती होगी।
कैसे होते है कुछ लोग?
जो ऐसी ज़िम्मेदारी से भाग जाते है, जिसके बारे मे क़यामत के रोज उनसे पूछताछ होगी।
अपनी #मां और #पत्नी
को बेपनाह इज़्ज़त दीजिये….
इसलिये कि एक तुम्हे दुनिया मेें लाई, और दूसरी सारी #दुनिया छोडकर तुम्हारे पास आई।
आज उसकी माहवारी का दूसरा दिन है।
पैरों में चलने की ताक़त नहीं है,
जांघों में जैसे पत्थर की सिल भरी है।
पेट की अंतड़ियां
दर्द से खिंची हुई हैं।
इस दर्द से उठती रूलाई
जबड़ों की सख़्ती में भिंची हुई है।
कल जब वो उस दुकान में
‘व्हीस्पर’ पैड का नाम ले फुसफुसाई थी,
सारे लोगों की जमी हुई नजरों के बीच,
दुकानदार ने काली थैली में लपेट
उसे ‘वो’ चीज लगभग छिपाते हुए पकड़ाई थी।
आज तो उसका पूरा बदन ही
दर्द से ऐंठा जाता है।
ऑफिस में कुर्सी पर देर तलक भी
बैठा नहीं जाता है।
क्या करे कि हर महीने के
इस पांच दिवसीय झंझट में,
छुट्टी ले के भी तो
लेटा नहीं जाता है।
उसका सहयोगी कनखियों से उसे देख,
बार-बार मुस्कुराता है,
बात करता है दूसरों से,
पर घुमा-फिरा के उसे ही
निशाना बनाता है।
वो अपने काम में दक्ष है
पर कल से दर्द की वजह से पस्त है
अचानक उसका बॉस उसे केबिन में बुलवाता हैै,
कल के अधूरे काम पर डांट पिलाता है।
काम में चुस्ती बरतने का
देते हुए सुझाव,
उस औरत के पच्चीस दिनों का लगातार
ओवरटाइम भूल जाता है।
अचानक उसकी निगाह,
उस औरत के चेहरे के पीलेपन, थकान
और शरीर की सुस्ती-कमजोरी पर जाती है,
और औरत की स्थिति शायद उसे
व्हीसपर के देखे किसी ऐड की याद दिलाती है।
अपने स्वर की सख्ती को अस्सी प्रतिशत दबाकर,
कहता है, ‘‘काम को कर लेना,
दो-चार दिन में दिल लगाकर।’’
केबिन के बाहर जाते
उसके मन में तेजी से असहजता की
एक लहर उमड़ आई थी।
नहीं, यह चिंता नहीं थी
पीछे कुर्ते पर कोई ‘धब्बा’
उभर आने की।
यहां राहत थी
अस्सी रुपये में खरीदे आठ पैड से
‘हैव ए हैप्पी पीरियड’ जुटाने की।
वो असहज थी क्योंकि
उसकी पीठ पर अब तक, वो गंदी निगाहें गढ़ी थीं,
और कानों में हल्की-सी
खिलखिलाहट पड़ी थी
‘‘इन औरतों का बराबरी का
झंडा नहीं झुकता है
जबकि हर महीने
अपना शरीर ही नहीं संभलता है।
शुक्र है हम मर्द इनके
ये ‘नाज-नखरे’ सह लेते हैं
और हंसकर इन औरतों को
बराबरी करने के मौके देते हैं।’’
ओ पुरुषो!
वो क्या करे
तुम्हारी इस सोच पर,
कैसे हैरानी ना जताए
और ना ही समझ पाती है
कि कैसे तुम्हें समझाए
वो आज जो रक्त-मांस
सेनेटरी नैपकिन या नालियों में बहाती है
उसी मांस-लोथड़े से कभी वक्त आने पर,
तुम्हारे वजूद के लिए,
‘कच्चा माल’ जुटाती है
और इसी माहवारी के दर्द से
वो अभ्यास पाती है
जब अपनी जान पर खेल
तुम्हें दुनिया में लाती है
इसलिए अरे ओ मर्दो
ना हंसो उस पर कि जब वो
इस दर्द से छटपटाती है
क्योंकि इसी माहवारी की बदौलत वो तुम्हें
‘भ्रूण’ से इंसान बनाती है ,,,,,,
।।नही करो तुम किसी का अपमान।।
।। हर नारी का करे सम्मान ।।
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