” पति की नही हुई वो मेरी क्या होगी”

पति की नही हुई वो मेरी क्या होगी"

” पति की नही हुई वो मेरी क्या होगी”

सुनकर चौकिये मत, ये बड़ा पैट सा डायलॉग है आजकल एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर्स के बाद सभ्य समाज में अक्सर मन भर जाने के बाद लोग दामन छुड़ाते हुए बोल ही देते हैं… आज जो कहानी मैं लिखने जा रहा हूँ भले इसका हिस्सा ना भी हूँ मैं पर गवाह और साक्षी हर बात का हूँ, बस देश काल परिस्थिति के अनुसार स्थान और पात्रों के नाम बदल गए हैं… बेनियंत्रित खर्चो, औकात से ज्यादा एक्सपेंडचर… और आधुनिकता ने समाजिक मूल्यों को खत्म सा ही कर दिया है। जो संबंध एक मौन स्वीकृति से शुरू हुआ कब अचानक भयावह रूप ले लेगा इसकी कल्पना भी आप नहीं कर सकते।

ये कहानी है एक छोटे से शहर की मिडिल क्लास लड़की दीपा की… बड़े सपने थे उसके… अच्छा भरा पुरा परिवार होगा… सारी खुशियां होंगी… अच्छा पति होगा… अच्छी नौकरी होगी… जोकि एक आम मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुई किसी भी लड़की के होते हैं… दीपा के भी थे…

आज वो दीपा फूट फूट कर रो रही थी… आज उसके प्रेमी ने उसे ये कहकर उलाहना दिया था… “जब तुम मेरे लिए अपने पति को धोखा दे सकती हो तो किसी और के लिए मुझे भी धोखा दे सकती हो। जो अपने पति की नही हुई वो मेरी क्या होगी” – आज विनोद के मुंह से ये शब्द सुनकर दीपा अवाक रह गई थी। उसका दिल बुरी तरह तड़प कर रह गया था।वह बिना कुछ कहे विनोद की गाड़ी से उतरी और अपने घर आ गई। बच्चों को स्कूल से आने में अभी काफी समय था।

        दीपा ने एक नजर अपने घर को देखा, फिर सोफे पर बैठकर सोचने लगी कि आखिर क्या मिला उसे ऐसे आनलाइन रिश्ते से??  दीपा का पति अच्छी नौकरी पर था। दो प्यारे बच्चे, खुद का घर- गाड़ी किसी चीज की कमी नही थी उसे सिवाय पति के समय की। और एक औरत के लिए उसके पति द्वारा उसको दिया गया समय सभी सांसारिक चीज़ो से कीमती होता है। उसका पति आफिस के काम में इतना व्यस्त होता गया कि प्रेम विवाह होने के बावजूद उसे समय देना ही भूल गया था। वैसे भी मर्द का प्यार तब तक ही होता है जब तक वह उसे हासिल न कर ले।

इस शहर में दीपा का अपना कोई था नही और न ही किसी से ज्यादा मिलना-जुलना उसे पसंद था। बस अपने रिश्तेदारों व दोस्तों से फोन पर बात हो जाती थी। अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन जी रही थी। विनोद से उसकी दोस्ती सोशल मिडिया पर हुई थी उसके शहर में ही रहता था। शुरुआत में तो वह सिर्फ सोशल मिडिया पर ही कभी-कभार दीपा को मैसेज करता रहता था। दीपा ने कभी रिप्लाई तो नही किया पर विनोद का उसकी तारीफ करना उसे भी अच्छा लगता था। कुछ समय बाद वह भी रिप्लाई करने लग गई। फिर पता ही नही चला कि कैसे बात सोशल मिडिया पर मैसेज करने से फोन पर बातचीत होने तक पहुंच गई।

दीपा भी पति के आफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद समय निकाल कर विनोद से फोन पर बात करने लग जाती। पति और बच्चों के घर के आने तक जितना भी समय मिलता, दोनों फोन पर लगे रहते। हां अगर कभी विनोद को कोई जरूरी काम होता तब उनकी बात नही हो पाती। अपने अकेलेपन में दीपा के कदम कब और कैसे विनोद की तरफ बढते चले गए उसे पता ही नही चला।

विनोद भी उस की हर बात सुनता, समझता व उसकी परवाह करता था। यही तो दीपा चाहती थी। कोई तो हो जिसे वह अपने दिल की हर बात बता सके। समय ऐसे ही गुजरता गया। अब दीपा को अपने पति से कोई शिकायत नही रहती थी क्योंकि उसने अपना सुकून कहीं और तलाश लिया था। ओढने पहनने की शौक़ीन, अब दीपा कुछ भी नया खरीदकर लाती तोह सबसे पहले विनोद को ही पहन कर दिखाती, क्यूँकि पति के पास तोह इतना समय ही नहीं था की नज़र भरके भी देख लें, साड़ी सूट मॉडर्न ड्रेस, हेयरकट, मेहंदी, हर फोटो पर विनोद भी दिल खोल कर तारीफों के पुल बांधता था, उसके मुँह से मोती झड़ते थे जैसे उससे खूबसूरत कोई और हो ही नहीं।

एकदिन विनोद ने उससे सेल्फी डिमांड की वो पहले तोह मना करती रही फिर विनोद नाराज ना हो जाये सोचकर भेज दी… फिर विनोद की डिमांड्स बढ़ती गई पहले उसने एकदिन इनर्स में देखने की ख्वाहिश जाहिर की, उसने साफ मना कर दिया तोह विनोद थोड़ा सा उससे नाराज सा हो गया, उसने दो दिन उससे बात नहीं की, मजबूरन उसने खुद ही उसे मेसेज किया, थोड़े गिले शिकवे हुए फिर बातचीत दुबारा चालू हो गई… कुछ दिन बाद विनोद ने फिरसे वही 2 पीस में देखने की इक्छा जाहिर की… इसबार उसने मना करते करते भी उसकी इक्छा पूरी कर ही दी। विनोद ने उसे अप्सरा कहा…उसे बहुत अच्छा लगा बहुत समय बाद, वैसे भी अब उसके पति उसपर ध्यान कम ही देते थे…

कुछ दिन विनोद ने उसे बाहर मिलने का प्रस्ताव रखा.. उसने कहा बाहर कोई देख लेगा तोह बड़ी बदनामी होगी… विनोद मनुहार करता रहा वो नहीं मानी.. तोह विनोद अपने प्यार की दुहाई देने लगा… की तुम अपने हाथों की चाय भी नहीं पिला सकती…फिर उसने कहा ठीक है चाय ही पीनी है तोह घर पर बना कर पिला दूँगी…एक दिन पति किसी काम से तीन दिन के टूर पर बाहर गए हुए थे, बच्चे स्कूल थे तोह उसने कहा तुम घर आ सकते हो…

विनोद तो इंतजार में था, बिना देरी किये उसके घर पहुँच गया…चाय पीतेपीते कब नजरें मिली, कब कुबूलनामा हुआ, कब जज्बात उफ़न गए गए… की दोनों ने लॉज शर्म की सारी सीमा लाँघ एक दूसरे के सामने बेपर्दा हो गए… जो कुछ सिर्फ फोटोज में देखा था वो सब आज सामने सामने देखा… ज़ब होश आया तोह कुछ कहने सुनने छुपाने को बचा नहीं था ।

उसदिन के बाद दीपा ने भी खुद को समर्पित सा कर दिया, पति तो नहीं पर पति जैसा जरूर मान लिया था विनोद को… पर यह सब बहुत ज्यादा दिन नही चला। धीरे-धीरे दीपा को महसूस होने लगा कि वक्त के साथ विनोद का व्यवहार काफी बदलने लगा है। अगर दीपा का फोन दो मिनट के लिए भी व्यस्त होता तो विनोद उस से सवाल करने लगता । विनोद नही चाहता था कि दीपा उसके अलावा किसी से भी बात करे। यहां तक कि दीपा ने अपने परिजनो को भी फोन करना बन्द कर दिया था। उसके मम्मी -पापा ,भाई -बहन खुद फोन करते तो ही वह बात करती। उस पर भी अगर बीच में विनोद का फोन आ जाता तो उसे हर बार अपनी सफाई पेश करनी होती। और तो और अब तो विनोद उसके सोशल मीडिया अकांऊट पर भी नजर रखने लगा था।

कभी किसी के कमेंट को लेकर तो कभी किसी के लाइक करने को लेकर विनोद हर बात का विवाद बना देता। पर दीपा विनोद को खोना नही चाहती थी इसलिए वह वही करती जो विनोद कहता। कितने ही जानने वालों को तो दीपा विनोद के कहने पर बिना किसी कारण ब्लाक कर चुकी थी। अब कई बार विनोद बेमतलब की बातों पर दीपा से लड़ाई करने लग जाता। वह बात-बात में दीपा के चरित्र पर सवाल करता, उस पर शक करता। जब भी वे मिलते विनोद उसका फोन जरूर चैक करता।

उस दिन पहली बार दीपा को अहसास हुआ कि उस से कितनी बडी गलती हो गयी है। दीपा के पति तो उस से कभी नही पूछते थे कि वह फोन पर किस से बात करती है न ही वह कभी उसका फोन चैक करते थे। हमेशा उसका सम्मान करते थे। दीपा पर शक करना तो दूर की बात थी। और इधर वह अकेलापन दूर करने के लिए ऐसे इन्सान के चक्कर में पड़ गई थी जो अब उसके मानसिक व भावनात्मक तनाव का कारण बन चुका था। उसे अब समझ आ गया था कि वह बैठे-बिठाए किस मकड़जाल में फंस चुकी है। उसी दिन दीपा ने विनोद का नंबर अपने फोन व सोशल मिडिया पे ब्लाक कर दिया था। पर कुछ दिन बाद विनोद ने फिर से दीपा का पीछा करना शुरू कर दिया। वह जहां भी जाती विनोद वहीं पहुंच जाता। नए- नए नंबरो से उसे फोन करता।

          दीपा कभी भी ऐसी नही थी जैसा उसे इन हालात ने बना दिया था। वह तो सिर्फ अपने पति से प्यार करती थी। विनोद ने ही उसे अपनी बातों के जाल में फंसाकर ऐसे हालात में पहुंचा दिया था। मगर अब वह इन सब से निकलना चाहती थी और इस रिश्ते को यहीं विराम देना चाहती थी। इसीलिए न चाहते हुए भी दीपा को उस से मिल कर बात करनी पड़ी। दीपा ने विनोद को काफी समझाया कि उनके बीच जो भी रिश्ता है उसका कोई  भविष्य  नही है इसलिए यह सब खत्म कर देना चाहिए। इस तरह शक करके लड़ाई- झगड़े करने का क्या फायदा??और जब विनोद को उस पर विश्वास ही नही है तो फिर ऐसे रिश्ते का क्या मतलब??

हालांकि विनोद को पता था कि दीपा का अपना परिवार है और वह किसी के लिए भी अपने परिवार को नही छोड़ सकती। फिर भी विनोद ने रो- रो कर दीपा से माफी मांग ली और दुबारा ऐसा न करने का वादा भी किया, साथ ही यह भी जता दिया कि यह सब ऐसे खत्म नही होने वाला। अब दीपा समझ चुकी थी कि विनोद इतनी आसानी से उसका पीछा छोड़ने वाला नही है। यह रिश्ता उसके लिए एक मजबूरी बन चुका था साथ ही यह भी डर था कि कहीं विनोद उसके पति को यह सब न बता दे। इसलिए उसने खुद को समझा लिया कि जैसा चल रहा है वैसे ही चलने दिया जाए।

फिर से वही सब फोन ,मैसेज, चैटिंग, विनोद का बात-बात पर सुनाना – कहां बिजी थी?? करो उसी से बात, उसने क्यों किया ऐसा कमैन्ट ?? इसको ब्लाक करो। इतनी देर आनलाइन?? किस से चैटिंग कर रही थी?? फिर खुद ही रूठ जाना और न मनाओ तो पीछा करना ,लड़ना-झगडना बस यही सब रह गया था। इस सब से दीपा बहुत परेशान हो चुकी थी। ऊपर से विनोद तरह तरह के बहाने करके उससे लाखों रूपये एंठ चूका था। उसने इस रिश्ते को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया तो विनोद ने अपना आखिरी दांव खेला उसकी कुछ पिक्स उसे वापस भेज दी अंतःवस्त्र की….

तब दीपा का मुझे फोन आया, रोते रोते अपनी सारी कहानी बताई, मैंने पहले तोह उसे खूब सुनाई की तुम बच्ची नहीं हो की किसी झांसे में आ गई, अगर ये बात खुल गई तोह जानती हो क्या होगा, तुम अपने पति अपने बच्चो की निगाह में गिर जाओगी… मैंने कहाँ अब क्या चाहती हो, उसने कहा मुझे इस ब्लैकमैलिंग से छुटकारा चाहिए… मैं मेरा परिवार टूटते हुए नहीं देखना चाहती… मैंने कहाँ ठीक है… मैं कोशिश करुँगा छुटकारा तोह 100% मिल जायेगा, पर गलती की है तो भुगतने को भी तैयार रहना, कोशिश करुँगा की बात ना खुले पर खुल गई तो सच एक्सेप्ट करना… तुम्हारा पति समझदार है… इसको एक्सेप्ट करेगा।

मैंने अपने एक दरोगा दोस्त से बात की और एक महिला दरोगा को कॉन्फिडेंस में लेकर, दीपा ने विनोद को मिलने के लिए कहीं बुलाया, फिर वही पुलिसिया दबाव से उसकी सारी पिक्स चैट्स सब कुछ रिकवर की, फोन कब्जे में लिया, बढ़िया सुतान करवाया, थोड़ी देर पहले तक शेर बना फिर रहा विनोद बकरी की तरह मिमियाने लगा… फिर वार्निंग देकर छोड़ दिया, पर उससे पहले तशरीफ अच्छे से सुजा कर भेजी, कुछ दिन सुबह शाम उठते बैठते भगवान जी जरूर स्मरण आये होंगे, इस तरह एक महिला, को ब्लैकमेल और शोषित होने से और उसका परिवार बिखरने से बच गया।

दीपा को देर से सही पर समझ तो आया कि वह सही हो या गलत किसी को हक नही है कि उसका फोन चैक करे। न ही उसे किसी को इतना हक देना चाहिए कि कोई उसे जलील करे या उसके आत्मसम्मान को चोटिल कर सके । एक गलती की जिल्लत जो दीपा ने झेली । हां उस से एक बार गलती हुई थी पर वह इतनी गिरी हुई नही थी कि हर किसी से आशिकी करती फिरे । न ही उसे ऐसा करने की जरूरत थी। मेरे कहने पर आखिर दीपा ने अंत में सोच लिया था अगर जरूरत पड़ी तो वह अपने पति को सब कुछ सच-सच बता देगी फिर चाहे जो सजा मिले। कम से कम उसे इस ब्लैकमेलिंग और जिल्लत से छुटकारा तो मिलेगा।

यहाँ मेरा एक सवाल है की गलत दोनों थे पर अंत में सज़ा एक महिला क्यूँ भुगत रही थी। ताली एक हाथ से नहीं बजती पर ताली बजाने से बजती है। आपकी इस बारे में क्या राय है अपने कमेंट करके जरूर बताएं…

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