पश्चाताप
कल शाम मैं अपने पड़ोसी सिन्हा दम्पति की शादी की सालगिरह में सपत्नी शरीक हुआ था। सिन्हा जी लगभग पांच -सात वर्ष पूर्व बैंक की सेवा से सेवा मुक्त हुए थे। बैंक में वे एक उच्च अधिकारी थे। गोरा रंग, लम्बा कद, बड़ी बड़ी ऑंखें, सर घने सफ़ेद बालों से पूरा अक्छादित, गठीला बदन, रोबिला आवाज़ और सफ़ेद कड़ी ,कड़ी मूंछे देख कर कोई भी पहली नज़र में उन्हें सेना का कोई उच्च अधिकारी समझ लेता है। परन्तु, वे बड़े ही सौम्य एवं शिष्टाचार से ओत -प्रोत एक व्यवहार कुशल एवं हँसमुख व्यक्ति हैं। उनकी बातचीत में मौके – बेमौके हास्य का पुट खूब रहता है।
सालगिरह का आयोजन सिन्हा जी के इकलौते पुत्र नीरज एवं पुत्रवधू सरिता ने बड़े ही धूमधाम से होटल आम्रपाली में किया था। कुछ चंद खास एवं विशिष्ट मेहमान ही इस पार्टी में आमंत्रित थे। खाने -पीने का दौड़ चल रहा था। बच्चे आपस में खूब उछल कूद कर रहे थे एवं महमानों के बीच छुप छुप कर लुक्का – छिप्पी का खेल खेल रहे थे। सिन्हा जी अपने मेहमानों का बड़े ही ही गरमजोशी के साथ स्वागत करने में लगे हुए थे। लेकिन, एक चीज मुझे खटक रही थी — मिसेज़ सिन्हा की अभूतपूर्व ख़ामोशी, उनकी निस्तेज ऑंखें और चेहरे पर फैली हुई एक गहरी उदासी! वैसे, मिसेज़ सिन्हा बड़ी ही हँसमुख एवं सबसे खुल कर मिलनेवाली महिला थी। उनके पुत्र नीरज की शादी सरिता के साथ हुए लगभग दो साल से थोड़ा अधिक हुआ होगा। इस शादी के पूर्व मैं ज़ब भी सिन्हा जी के घर शिष्टाचारवश जाता तो मिसेज़ सिन्हा बड़े ही गरमजोशी से मेरा स्वागत करती। उनकी बातों का सिलसिला थमने का कभी नाम नहीं लेता और इस बीच अपनी इकलौती पुत्री पूजा को मेरे लिए नाश्ता एवं चाय -काफ़ी लाने के लिए बीच बीच में खूब फरमान जारी करती रहती थी। इसबार की उनकी जबरदस्त चुप्पी और चेहरे पर छाई गहरी उदासी ने मुझे थोड़ा चिंतित कर दिया। मैं इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ था कि सिन्हा जी मेहमानों से मिलते जुलते मेरे पास पहुंचे और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए पूछ बैठे,-“अरे, सिंह साहब! कुछ लिया आपने। मैं अपनी कुर्सी से खड़ा होकर उनके प्रश्न का उतर देने के बदले उनसे अचानक पूछ लिया –” भाभी को हुआ क्या है? एकदम से गुमसुम, उदास!” सिन्हा जी अपना मुँह मेरे कान के पास लाते हुए धीरे से बोले,- ” नीरज एवं सरिता की शादी के बाद से ही इनका व्यवहार धीरे धीरे बदलना शुरू हो गया था। मैंने इन्हें एक मनोचिकित्सक से दिखाया भी है और उनके द्वारा इनकी कई राउंड की काउन्सलिंग भी हो चुकी है।” सिन्हा जी बिना रुके आगे बोले,-“कल डाक्टर साहब ने पुनः इन्हें काउन्सलिंग के लिए बुलाया है। कल आप भी मेरे साथ चलें। ” मैंने हामी भर दी।
https://Samadhan.techtunecentre.com/आज शाम मिसेज़ सिन्हा के साथ हमदोनों डाक्टर साहब के क्लिनिक पर पहुंचे। डॉक्टर साहब ने मरीज की विगत पंद्रह दिनों की समस्या के बारे में सिन्हा जी से पूछा। सिन्हा जी ने बताया,– “क़रीब इधर पंद्रह -बीस दिनों से मेरी पत्नी ने मौन व्रत धारण कर रखा है। चुपचाप बैठी रहती है। ऐसा लगता है जैसे किसी बड़ी समस्या पर गहन चिंतन कर रही हो। किसी के भी पूछने पर ना ही मौन व्रत धारण करने का कारण बताती है और ना ही कुछ बोलती है। बाकी दिनचर्या पूर्व की भांति यथावत है।”
मरीज़ की हाल की समस्या जानने के बाद कुछ सोचकर डॉक्टर साहब ने मुझे एवं सिन्हा जी को कुछ देर चिकित्सक कक्ष से बाहर बैठने को कहा। हमलोगों के बाहर जाने के बाद डॉक्टर साहब ने मिसेज़ सिन्हा से कहा – “मैं आपकी समस्या समझता हूँ । इसी समस्या से कुछ दिनों पहले तक मेरी पत्नी भी ग्रसित थी। जब बेटा ही जोरू का गुलाम हो जाये तो बहू वश में कैसे रहेगी? लेकिन जबसे मैंने अपनी पत्नी को एक नायाब तरीक़ा बताया है तब से मेरे घर में सब कुछ मेरी पत्नी के इच्छानुसार ही होता है।”
इतना सुनते ही मिसेज़ सिन्हा अचानक से बोल पड़ीं, – “ऐसा कौन-सा तरीक़ा है? कृपया मुझे भी बताइये।” ” आपने अभी तक कौन-कौन से तरीक़े आज़माये हैं? पहले वह तो बताइये। तभी तो मैं आपकी समस्या का सटीक समाधान निकाल पाऊंगा,” – डॉक्टर साहब ने चतुराई से पूछा।
मिसेज़ सिन्हा ने कहा, –“हिंदुस्तान की सासों और ननदों ने आज तक जितने तरीक़े अपनाये होंगे, मैंने और मेरी बेटी ने उन सभी को आज़मा कर देख लिया। हम दोनों ने मिलकर बहू को अनगिनत शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं। बेटे और बहू को अलग करने के लिए भी दोनों के बीच हर रोज़ ग़लतफ़हमी फैलाने की कोशिश की। दोनों को सामाजिक रूप से बदनाम करने का हमने हरसंभव प्रयास किया। आर्थिक रूप से पंगु बना दिया। जिसमें मेरे पति ने भी बखूबी मेरा साथ दिया। पोते के जन्म के एक माह पश्चात ही मैंने अपने बड़े बेटे को उसकी पत्नी और बच्चे सहित एक वर्ष के लिए घर से निकाल दिया। हर तरह से लाचार बना दिया। लेकिन मेरे बेटे के दिल में अपनी पत्नी के लिए प्रेम तनिक भी कम ना हुआ और हर तरह से उसकी रक्षा करता रहा। यह बात मेरे लिए बर्दाश्त से बाहर था। जब मुझे लगा कि मैं अपने बेटे के जीते जी अपनी बहू को अपनी मुट्ठी में करके नहीं रख सकती तो मैंने और मेरी बेटी ने मिलकर दो महीने पहले अपने बेटे और बहू दोनों को खूब ख़री -खोटी सुनाई। इस घटना के एक दिन बाद ही मैंने अपनी बहू के कमरे से बेटे एवं बहू की हंसने की आवाज सुनी। यह सुनकर मेरे ह्रदय पर सांप लोट गया एवं मन को जोर का धक्का लगा।आख़िर इतनी प्रताड़ना सहने के बाद भी मेरा बेटा और मेरी बहू आपस में खुश कैसे हैं? अब मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं हार गयी हूँ । परंतु, आपने बताया कि कोई नायाब तरीक़ा है आपके पास। मैं वो जानना चाहती हूँ ।”

डॉक्टर साहब अब तक अपने क्रोध को छुपाये हुए विस्मित होकर सुन रहे थे। दो मिनट के मौन के बाद डॉक्टर साहब ने कहा –“मेरे कक्ष में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है। आपने अभी जो कुछ भी कहा वो रिकॉर्ड हो चुका है। आपके इकबाले जुर्म और आपके पुत्र एवं पुत्रवधू की शिकायत पर आपको आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है। लेकिन मैं जानता हूँ आपके पुत्र व पुत्रवधू ऐसा नहीं होने देंगे। मिसेज़ सिन्हा! आप जैसी औरतों का इलाज़ इस सृष्टि में तब तक कोई नहीं कर सकता, जब तक भारत में नीरज जैसे पुत्र के संग सरिता जैसी पुत्रवधू होगी।”
डाक्टर साहब के कक्ष के बाहर मैं और सिन्हा साहब आपसी गप्प में मशगूल थे। तभी मिसेज़ सिन्हा की आवाज कानों में पड़ी जो सिन्हा साहब से घर चलने के लिए कह रही थी। मैंने गौर से उन्हें देखा। उनके चेहरे पर असीम शांति के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। लेकिन, उनकी आँखों में आँसू साफ -साफ तैरते दिखे। शायद,ये पश्चात्ताप के रहे होंगे। तभी डाक्टर साहब अपने कक्ष से बाहर निकले। उन्होंने मुस्कुराते हुए सिन्हा जी कहा,- ” मिसेज़ सिन्हा अब बिलकुल स्वस्थ हो गई हैं और आगे इन्हें किसी इलाज की जरूरत नहीं है।