पिथौरी,दलबल्ला, दलफरा, दलडुबकी, दाल ढोकली, दाली कय दूल्हा
आज घर पर बहुत काम था, या बाहर घूम कर आयी है और थक गयी है।
भोजन बनाने का मन नहीं है या भूख कम है तो फिर आप क्या करेंगी?

कुछ बाहर से मंगाएगी है न?
चलिए बाहर से कुछ खाने के लिए मंगा तो लेगी लेकिन फिर परिवार के स्वास्थ्य का ख्याल कैसे रखेगी? बाहर का नुकसान दायक अनहेल्दी भोजन परिवार वालों को खिलाना या स्वयं खाना क्या उचित है?
नहीं न!
मत परेशान होइए आज हम आपके सुविधानुसार, कम मेहनत और जल्दी बनने वाला, स्वास्थ्य वर्धक एवं सुपाच्य भोजन बनाने की विधि लेकर आये है जो आपके परिवार को पसंद भी आएगी और स्वास्थ्यवर्धक भी है।
जी हाँ!
दाल और आटे के तालमेल से बना है ये भोजन
अगर आज के समय के हिसाब से चटपट बनाना है तो रोजाना की तरह कुकर में अरहर की दाल नमक, मिर्ची, हल्दी पाउडर डालकर उबाल ले और आटे से मनपसंद आकार की ढोकली या बल्ला बनाकर कुकर में डालकर फिर से एक सीटी लगा लें और जीरा, हींग, सूखी लाल मिर्च का या अपनी मनपसंद का तड़का लगाए और लीजिये तैयार है आपका दलबल्ला खाइये।
अगर आप थोड़ी मेहनत करना चाहते है और पारम्परिक विधि से बनाना चाहते है तो वो तरीका भी बता रही।
सबसे पहले आप देशी, बिन पॉलिस वाली अरहर दाल लीजिये। उसे हल्का सा सेक लें। सेकना इसलिए है क्योंकि इसमें सोंधेपन की खुश्बू आ जाती है।
जब हमारे घर पर अरहर की फ़सल होती थी। तब हमारी आजी या नानी जी साबुत अरहर को मिट्टी के कड़ाही में सेक कर फिर चकिया में दलकर दाल बनाती थी। सेकने से छिलके आसानी से उतर जाते थे और सोधेपन से दाल का स्वाद बढ़ जाता था।
अब अरहर ही हैब्रिड वाली रहती है जिसमे वैसे भी कोई स्वाद नहीं रहता। इसे सेकते नहीं है बल्कि भिगोकर फिर दाल बनाते है ऊपर से रही सही कसर पॉलिस पूरी कर देती है।
हाँ! तो दाल हल्का सा सेक लें। भारी तले का भगोना या बटलोई लें। बर्तन को आधा पानी से भर दे और गर्म करने के लिए रख दें।
जब तक पानी गर्म होता है तब तक दाल साफ करके धो लें और भगोने या बटलोई में डालकर एक उबाल आने तक पकाये।
जब उबाल आ जाये तब ऊपर आया झाग कलछी की मदद से हटा दें। इस झाग में कुछ ऐसे हानिकारक पदार्थ होते है जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होते है।
कुकर में दाल बनाने से ये हानिकारक पदार्थ दाल में घुल मिल जाते है जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते है।
झाग निकालने के बाद हल्दी, मिर्ची पाउडर, नमक एवं लहसुन कूट कर डालें और तसल्ली से दाल पकने दें।
जब दाल चूल्हे पर बनती थी तब मसाले भी सिल बट्टे पर पिसे जाते थे। साबुत हल्दी, लहसुन की कलिया, सूखी लाल मिर्च सिल पर पीस कर दाल का मसाला बनाया जाता था और नमक भी साबुत डले वाले डाले जाते थे।
खैर आप अपनी दाल बीच बीच में देखते रहें की चिपक न रही हो या पानी सूखने से जलने न पाए। जब दाल पक जाये पानी लगभग सूख जाये तब उसे कलछी या मथनी से घोंट दीजिये और जितनी दाल आपको चाहिए उस हिसाब से पानी गर्म करके डाल दें।
इसी समय आप आटे से बनाये फरे या बल्ले भी डाल दें यदि थोड़ी खटास पसंद करते हो तो खटाई भी डाल दें।
अब दाल में उबाल आने तक आंच तेज रखें, उबाल आने के बाद आंच कम करके लगभग दस मिनट तक पकाये फिर लहसुन, हरी मिर्च सरसों के तेल में सुनहरा होने तक सेके और बनी हुई दाल में तड़का लगाए और सबको गर्म गर्म परोसे।
जरूरी टिप —-हमारी तरफ इसे पीली यानि अरहर दाल वाली खिचड़ी में भी डालते है और आपके पास बनी हुई अरहर दाल रखी हो तो भी फटाफट फरे या बल्ले बनाइये दाल में डालिये और एक सीटी लगा दें। दाल पियेंगे तो पेट नहीं भरेगा लेकिन दाल के साथ आटे के बने फरे पेट में जायेगे तब लगेगा कुछ खाया है और भोजन की मात्रा भी बढ़ जायेगी।
नोट —कुछ लोग आटे को रोटी की तरह बेल कर फिर उसे लम्बे आकार में काटकर दाल में डालते है, कुछ लोग परांठे बेलकर फिर काटकर डालते है हमारी तरफ इसे दोनों हाथ की मदद से चित्र के अनुसार आकार देकर बनाया जाता है और फिर दाल में डालते है।
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दाल_भात
हम बिहारी की सबसे कमजोर आदत है दोपहर में भात खाना अगर आप बिहार के हैं तो भात के भी जरूर शौकीन होंगे दोपहर के भोजन में अगर भात नहीं है तो लगेगा कि आज दिन भर आपने कुछ नहीं खाया यह हमारे खान-पान की आदत में शामिल है। घर से दूर होने पर पता चलता है घर के खाने की अहमियत वैसे हम जिस इलाके से आते हैं वहां दाल भात चोखा भुजिया पापड़ सब्जी तथा विशेष अवसरों पर पकौड़े दही बड़ा उपलब्ध होने पर दही लोगों के दोपहर के भजन में शामिल है। गुरुवार को खाने-पीने में काफी परेशानी होती है घर के अंदर और घर के बाहर नॉनवेज पर रोक होता है। वैसे ईश्वर की कृपा से जो रुखा सुखा समय पर उपलब्ध हो जाता है वही मेरे लिए सबसे लजीज भोजन होता है।