पुरानी_बात

पुरानी_बात

जिन औरतों को बहलाया गया था दाम्पत्य में,

” मैं हूँ ना ,तुम आराम से घर की देखभाल करो,बाहर का जिम्मा मेरा ।”
“मैं नही चाहता कि तुमको उस सब से दो चार होना पड़े,
जिससे होते देखा है अन्य कर्मचारी महिलाओं को।”
” तुम मेरा परिवार सम्भालो ,मैं तुम्हारे नाज़ सम्भालूंगा। “

सब का सब धरा रह गया ।

रोती सिसकती,आँसू पोंछती औरतें बिठा रही हैं ब्यौंत,
लगा रही हैं जोर, कहीं कोई काम मिल जाए,साथी के अभाव में ।

जुगत लगाया जा रहा अपनी ई मेल आईडी ,पासवर्ड जानने का,जो बरसों पहले पति ने फेसबुक आईडी बनाते समय बतलायी थी।

पासवर्ड के नाम पर बच्चों पति के नाम ,जन्मतिथि से ज्यादा जिन्हें कभी न कुछ सूझा,
वो समझना चाह रहीं थी बड़े जुगाड़ जो चैन से खायी जा सके दो वक्त की रोटी बाकी की ज़िन्दगी में।

पतियों ने बचाया था जिन नज़रों से,
“उसके सामने मत आया करो,वो कुछ ठीक आदमी नहीं।”
“उस रिश्तेदार से ज्यादा न बतियाया करो ,उनके बारे में लोग ऐसा वैसा कहते हैं।

सबका सामना कर रही हैं औरतें जिनको सहेजा गया था पलकों पर।

ये दुनिया बड़ी संगदिल है और ईश्वर सिखाने को तत्पर,
हर बार की तरह इस बार भी छली तुम ही जाओगी,
साथी की मुहब्बत में ,ईश्वर के प्रेम में।

सुनो औरतों पलकों पर रहना मत चुनना कभी ,
मत बनना सीप का मोती।
तुम पेड़ बनना ,मत होना बेल ,
जितना पनप सको खुद के बल पर पनपना।

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