प्रत्येक स्त्री का सम्मान करना चाहिए
राजकुमार भदायु बहुत ही शूरवीर और चरित्रवान थे। वह स्वर्ग का राज छोड़ सकता था , पर अपने चरित्र पर कोई दाग नहीं लगा सकता था। भदायु प्रतिदिन आखेट के लिए वन में जाता था ,वह केवल सिंहों और बाघों का ही शिकार करता था। .
एक दिन वन में धनुष -वाण लिए घूमते दोपहर हो गई पर कोई बाघ या सिंह नहीं दिखाई पड़ा। तभी किसी के रुदन का स्वर उसके कानों में पड़ा। उसने उस करुण ध्वनि पर ध्यान दिया तो प्रतीत हुआ कोई स्त्री करुण स्वर में रो रही है।
भदायु उस स्वर की और चल पड़ा। कुछ दूर जाने पर उसने जो द्रश्य देखा तो आश्चर्य के सागर में डूब गया। वहां एक बेहद खूसूरत युवती एक शिलाखंड पर बैठी सिसक-सिसक कर रो रही थी। और उसके सामने कुछ दुरी पर विकराल रूप धारण किये हुए एक प्रचंड सिंह खड़ा हुआ ,जो अपने लाल-लाल नेत्रों से उसकी ओर घूर रहा था।

भदायु ने बिना एक क्षण गवाये धनुष पर बाण रखा ,ताकि चलाकर सिंह को मार सके और उस युवती को बचाले नहीं तो, सिंह उसे मार डालेगा। पर यह क्या !.. उसका बाण छूटा ही नहीं !
तभी सिंह मनुष्य की बोली में बोल उठा –‘तुम मुझे मारना चाहते हो पर मार नहीं सकते !’
भदायु को अपने आप पर क्रोध आ रहा था। और वह सोच भी रहा था कि यह कैसा आश्चर्य है कि एक सुंदरी बैठी हुई सिसक रही है ,उसके सामने खड़ा सिंह उसको मारकर खा जाने को तैयार है और वह मनुष्य की बोली बोल रहा है और कह रहा है कि मैं उसे मार नहीं सकता !यह सब क्या हो रहा है ?’…
भदायु ने क्रोधित होकर पुनः अपना बाण धनुष पर रखा किन्तु चमत्कार ,वह बाण नहीं चला सका ।
सिंह उसकी ओर देखते हुए पुनः बोला -‘राजकुमार। तुम्हारा प्रयास करना व्यर्थ है क्योंकि तुम मुझे नहीं मार सकते !. मैं इस युवती को मारकर खाने के लिए ही यहां उठा लाया था ,पर यह इतनी सुंदर है कि इसे मारकर खाने का साहस नहीं हो रहा है ,लेकिन जब मेरी भूख उग्र रूप धारण कर लेगी तो अवश्य इस सुंदरी को खा जाऊंगा। हां इस दरम्यान इसे तुम बचना चाहते हो तो एक ही उपाय है। तुम धनुष -बाण फेंककर अपने आपको मुझे सुपुर्द कर दो। मैं तुम्हे मारकर खा जाऊंगा और इस सुंदरी को छोड़ दूंगा। ‘
सिंह की बात पर राजकुमार ने एक क्षण सोचा फिर दूसरे पल धनुष-बाण फेंककर सिंह की ओर चल पड़ा ,किन्तु आश्चर्य !.. जब वह सिंह के समीप पहुंचा तो सिंह अंतर्ध्यान हो गया। वह अपने स्थान पर नहीं था। भदायु चकित होकर इधर-उधर देखने लगा पर सिंह उसे कही भी दिखाई नहीं पड़ा। तभी एक गंभीर वाणी गूंजी –‘राजकुमार ,यह युवती सिंहल देश के राजा की पुत्री है। अब तुम इसके साथ विवाह करके सुखपूर्वक जीवन बिता सकते हो। तुम्हें सुंदरी स्त्री के साथ अकूत संपत्ति भी मिलेगी। ‘
भदायु ने अचरज से पूछा –‘भाई !तुम कौन हो?.. मैं इस युवती की रक्षा इसलिए नहीं कर रहा था कि इससे विवाह करके सुख का जीवन व्यतीत करूं ?बल्कि मैं तो इसकी रक्षा इसलिए कर रहा था कि यह दुःख और विपदा में पड़ी हुई एक अबला स्त्री थी। मैं प्रत्येक स्त्री का आदर अपनी माँ के समान ही करता हूं। ‘
अभी भदायु ने अपना कथन समाप्त ही किया था कि उसने एक और आश्चर्य देखा इस बार वह सुंदर युवती भी अपने स्थान से गायब हो गई थी। अब भदायु बहुत ही आश्चर्य के साथ इधर-उधर देखने लगा। उसे सिंह की तरह वह युवती भी दिखलाई नहीं दी।
पर एक मृदुल स्वर जरूर कानों में सुनाई पड़ा –‘राजकुमार !जिस सिंह को तुमने देखा है ,वह वन के देवता है और मैं उस वन देवता की पुत्री हूं। तुम्हारे चरित्रवान होने के किस्से हमने बहुत सुन रखे थे इसलिए तुम्हारे चरित्र की परीक्षा लेने के लिए हम पिता-पुत्री ने यह नाटक किया था। तुम परीक्षा में एकदम खरे उतरे हो। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। तुम मुझसे जो चाहो वरदान मांग सकते हो। ‘

भदायु ने सोचते हुए कहा -‘देवी !यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो यह वरदान दीजिये ,मेरे हृदय में सदा स्त्रियों को माँ मानकर उनके प्रति आदर प्रगट करने का भाव बना रहें। ‘
एक मृदुल स्वर पुनः गूंजा –‘ऐसा ही होगा राजकुमार ,किन्तु एक स्त्री को तो तुम्हे अपनी पत्नी बनाना ही पड़ेगा। ‘
भदायु ने हैरानी के साथ देखा कि वही सुंदर युवती हाथ में पुष्पहार लिए हुए उसके सामने खड़ी थी। वह बोली –‘राजकुमार !मेरे पुष्पहार को स्वीकार करें। आपके समान श्रेष्ठ पुरुष मुझे कहां मिलेगा ?’
राजकुमार भदायु ने सोचते हुए उस युवती का हाथ अपने हाथ में ले लिया और युवती का पुष्पहार ,उसके गले में पड़ गया। पक्षी चहचहाने लगें ,मंगल गीत गाने लगें ,चरित्रनिष्ठ मनुष्यों को इसी प्रकार अनायास ही स्वर्ग के सुख प्राप्त हो जाते है।