“बेटी क्यों पराई”

“बेटी क्यों पराई”

नमस्कार दोस्तों 🙏🙏

आप सबके बीच में महान् कवि द्वारा रचित ‘बेटी क्यों होती है पराई’ पर कुछ पंक्तियां पेश कर रही हूं। कोई गल्ती या कमी हो जाए तो माफ कर दीजिएगा…

                      "बेटी क्यों पराई"

बेटी क्यों पराई
बैठ बिठा के पास अपने
बालों में चंपी करने लगी मां..
हो गई हो बेटी तुम बड़ी
ये बात समझाने लगी मां ..
जाना है अब अपने घर
इस घर में तुम हो पराई !!!

वहां तुम्हें मां समान सास मिलेगी
जो मुझसे अधिक प्यार देगी,
सारे रिश्ते वहां पे होंगे,
जो हमसे ज्यादा दुलार देंगे ,
पति मिलेगा तुमकों लाडो,
जो सारी खुशियां न्यौंछावर करेगा..!!
मां की बात सुनते – सुनते,
आंख मेरी भर आई ,
हिम्मत करके पूछ लिया मां से,
क्यों ? मां अपने ही घर में क्यों हूं मैं पराई ,….!!

मां मुस्कुराई प्यार से समझाती,
दुनिया का दस्तूर है, बेटी तो होती ही है पराई ..
ये रीत है मेरी लाडो पुरानी,
तुझे भी है एक दिन निभानी..!!
वो दिन भी आया अपने ही घर से हो चली पराई ,
मां की बात पल्लू में बांध विदा हुई,
सारे रिश्ते नाते थे जिनको चली में निभाने.. .!
जो बेटी 8 बजे उठती वो उठने लगी 5 बजे,
गृहस्ती की बागडोर समझने लगी थी धीरे – धीरे..
सबका प्यार पाने को हर काम शिद्दत से करती
मगर एक तिहाई प्यार भी पा ना सकी…!!

बात- बात होती रहती तानों की बौछार,
छोटी-छोटी गलती भी लगती मानो कर दिया कोई अपराध…
मां यही सिखलाया है होता यही दिन – रात,
पलट के जवाब तो दे सकती थी “मगर”,
मां ने तो सिखलाया था मत देना पलट के जवाब..!!
कभी मन करता मैं भी जोर – जोर हंस लू,
पहले की तरह खुले आसमां में उड़ लूं..
सबका प्यार पाने को हर कोशिश करती रही,
जो मां ने कहा था उसका एक तिहाई भी कहा मिल पाया…!!

थोड़ा सा प्यार पाने को तरसती रही उम्र भर,
मां ने जो कहा था वो क्या झूठ था सोचती रही हर पल..
खुद ही रोती खुद चुप हो जाती,
क्यों अपने घर ही घर में बेटी,
होती है पराई ये बात खटकती हर क्षण….!!
जहां जन्म लिया वो घर मेरा नहीं,
जहां आई वो घर भी मेरा नहीं..
फिर कौन सा घर है मेरा,
यही सोचती हर पल…!!
मां एक बार फिर से,
अपने गोद में सोने दे ….
एक बार मेरे आंसुओं को
अपने आंचल से पोछ लेने दे..
किसने ये रीत बनाई,
अपने ही घर में बेटी हुई पराई…!!

धन्यवाद 🙏🙏
✍️………….

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