माँ हार गई पर एक टीचर की जीत हुई
सरिता को अस्पताल में भर्ती कराते ही दिव्या ने भाई वरुण को फोन किया था जो अमेरिका में रहता है । उसने कहा कि देख दिव्या माँ बड़ी हो गई है और ऐसे प्रॉब्लम तो आते ही रहेंगे । तुम्हें पैसे चाहिए तो कहो मैं भेज देता हूँ पर मुझे लगता है कि मैं नहीं आ पाऊँगा ।
दिव्या को बहुत बुरा लगा परंतु वह कुछ नहीं कर सकती है । इसलिए आँखों में आँसू भरकर बैठी हुई थी ।
सरला देवी अपना चेकप कराने के लिए अस्पताल गई थी उनका नंबर आने में अभी समय था तो वे भी दिव्या के पास वाली कुर्सी पर बैठ गई थी । अचानक उन्होंने देखा कि दिव्या रो रही थी । सरला देवी ने पूछा बेटा क्या बात है क्यों रो रही हो ।
पहले तो उसने कुछ नहीं कहा परंतु सरला देवी के बार बार पूछने पर उसने रोते हुए कहा कि माँ बीमार है और डाक्टरों ने कहा है कि हालत नाजुक है ।
सरला देवी ने कहा बेटा इस दुनिया में जो भी आया है उसे एक ना एक दिन जाना ही होगा । अब मुझे ही देखो मेरे बेटे छोटा ही था इंजीनियरिंग पढ़ रहा था और रोड एक्सिडेंट में उसकी मृत्यु हो गई है । माता पिता के रहते हुए बेटे का इस तरह जाना कितनी बदनसीबी है।
उनकी बातों को सुनकर दिव्या को बहुत बुरा लगा था कि उनका बेटा तो छोटा है और मेरी माँ तो सत्तर से ऊपर की हो गई है ।
उसी समय डॉक्टर ने उसे बुलाया और बताया था कि आपकी माँ अब नहीं रही । वह रोते हुए भाई को फोन करने लगी दो तीन बार रिंग के जाने के बाद वहाँ से फोन कट कर दिया गया था । वह सरला देवी के पास आई और उन्हें यह भी बताया था कि भाई आने को तैयार नहीं है माँ गुजर गई है उसे बताना चाह रही हूँ लेकिन फोन कट कर दिया है । अब मैं क्या करूँ इनका अंतिम संस्कार कौन करेगा ।
सरला देवी के पति भी आ गए। उन्होंने कहा कि चल बेटा हम तुम्हारी मदद कर देंगे ।
अभी वे इस समस्या पर चर्चा कर रहे थे कि दो तीन नवजवान आए और उन्होंने उनसे कहा कि आप लोगों को फिक्र करने की जरूरत नहीं है हम सब देख लेंगे । दिव्या ने देखा कि देखते ही देखते बहुत सारे लोग आ गए थे ।
दिव्या को समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है । यह सारे लोग कौन हैं। ये सब मेरी मदद क्यों कर रहे हैं। अभी वह सोच ही रही भी कि उन में से एक नवजवान दिव्या के पास आकर उस से उनके घर का पता पूछता है । जैसे ही दिव्या ने घर का पता दिया तो वे ही युवक सरिता के पार्थिव शरीर को उनके घर ले कर गए ।
दिव्या ने देखा कि वहाँ कुछ लोग पहले से ही मौजूद थे। उन्होंने घर के सामने शामियाना लगवाया था । खाने पीने की व्यवस्था भी कर दिया था । दिव्या तो रोना भी भूल कर इस अद्भुत चमत्कार को आश्चर्य चकित होकर देख रही थी।
घर पहुँचने के बाद सरिता के पार्थिव शरीर को एक ऊँची जगह पर रखा दिया गया था। दिव्या अभी उन लोगों से कुछ पूछने के लिए आगे बढ़. ही रही थी कि उसे सामने एक वृद्ध पुरुष खड़े हुए दिखे थे।
उन्हें देख कर लग रहा था कि इन्हें कहीं देखा है । दिमाग़ पर जोर लगाया तो उसे याद आया था कि ये हमारे गणित के पुरुषोत्तम सर हैं । उसने उनके पैर हुए और माँ के मृत शरीर को दिखाते हुए रोने लगती है और कहती है कि देखिए ना सर मां हमें छोडकर कैसे चली गई है।

उन्होंने कहा कि बेटा तुम्हारी माँ मेहनती है मैंने उनके साथ मिलकर काम किया है। आज भी हमारे विद्यार्थी सरिता मेम को याद करते हैं। मुझे सौरभ ने फोन पर बताया था कि सर सरिता टीचर अस्पताल में भर्ती हुईं हैं उनकी हालत खराब है। मेरे ख्याल से बेटी अकेली है और भाई अमेरिका में है औैर आने से इंकार कर रहा है मैं क्या करूँ बताइए।
दिव्या को आँख़ें फाडकर देखते हुए देख कर सर ने कहा कि आश्चर्य हो रहा है ना कि मुझे यह सब कैसे पता चला है। सौरभ उसी अस्प ताल में डाक्टर है जहाँ सरिता को भर्ती कराया गया है।
उसने तुम्हारे भाई से हो रही बातों को अनचाहे ही सुन लिया था। उसने ही मुझे सब कुछ बताया है। अब तक तुम जितने भी लोगों को काम करते हुए देख रही हो के सब तुम्हारी मां के छात्र हैं।
पुरुषोत्तम सर के मार्ग दर्शन से उन सभी छात्रों ने माँ को भव्यपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित किया था। मुझे लगा कि एक माँ हार गई थी लेकिन एक टीचर की जीत हुई है। माँ को याद कर दिव्या की आँखों में खुशी के आँसू भर आए। पुरुषोत्तम सर ने उसके सर पर हाथ रखा और कहा कि जरूरत पडने पर मुझे याद करना।