ये कहानी नही सच्ची घटना है…!!
पढ़ कर रोना आ जायेगा….धीरे धीरे पढ़ियेगा….!!
माया
मैं जैसे ही गाँव से पटना के लिए निकलनेवाला ही था कि पप्पू दौड़ता हुआ मेरे पास आया। ” विनोद चाचा , गाड़ी में जगह बा का?
माया फुआ के पटना तक जाये के बा “–वह हाँफते हुए बोला। ” बहुत जगह बा , हम आ के लेले तानी “,
-मैंने कहा।
माया शिव काका की इकलौती बेटी है। तीन भाइयों में सब से छोटी। बचपन मे बड़ी ही नटखट एवं चंचल थी। मैं उसे बहुत मानता था तथा उसकी तुतली भाषा का नकल करते हुए बहुत चिढ़ाता था। समय धीरे धीरे बीतता गया। उस के मैट्रिक परीक्षा पास करते ही शिव काका ने उस की शादी एक खाते पीते परिवार में कर दिया। उस का ससुराल आरा शहर से सटे एक गाँव में है।
शिव काका के तीनों लड़कों की शादी माया की शादी के बहुत पहले ही हो चुकी थी। परिवार की सब से छोटी संतान होने की वजह से माया की परिवार में काफी पूछ होती थी। शिव काका का प्राण तो माया में ही मानों बसता था। वह माया की हर छोटी बड़ी मांग पल भर में ही पूरा कर देते थे। मैंने शिव काका को कई बार कहते सुना था -" बेटा पर के बेटी पहाड़ पर के खेती , छोड़ पिया खेती खेला पिया बेटी ।"
कहते है न , समय सदा एक सा नही रहता है। कभी सुख तो कभी दुःख, कभी मान तो कभी अपमान यह तो नियति का अकाट्य नियम है। शिव काका की एक लंबे एवं असाध्य बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई। खबर मिलने पर माया गाँव आई थी।
रोते रोते उस का बुरा हाल था। उस के बाद से मायका में धीरे धीरे भाई - भौजाइयों के बीच उस की पूछ कम होने लगी थी। जो भाई शिव काका की जिंदगी में मौके, बे-मौके, तीज-त्योहार के अवसरों पर दौड़ते हुये माया के यहाँ पहुँच जाते थे
अब उनकी मृत्यु के बाद उस की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखते थे। बाद में, शिव काका के लड़के आपस मे बट गए और काकी को खोरीश में मात्र एक बीघा जमीन संयुक्त रूप से दे कर इन लोगों ने अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली।
लेकिन, माया को जब भी मौका मिलता वह अपनी माँ के लिए नए नए कपड़े एवं जरूरत का समान ले कर पहुँच जाती। मैंने एक बार उस से पूछा था -"माया ! भाई -भौजाई लोग पूछ- उँछ करेला ?" "का कह ता र भैया, एक गिलास पानी त पूछ बे ना करे ला लोग !" --बोलते हुए उस की आवाज भर आयी थी। " जब तक माई जियत बिया तबे तक हमरा खातिर ई नैहर बा , भैया! "- वह आगे बोली --" भाई - भौजाई आज कल के युग में के कर हो खे ला कि हमार हो जाई ।"
विगत साल होली के कुछ दिनों पहले माया की मां का देहांत हो गया। उस के बाद वह पहली बार गाँव आयी थी। यह जान कर कि माया गाँव में आयी हुई है मुझे बहुत खुशी हुई। मैं पत्नी के साथ गाड़ी ले कर उसे लेने पहुँचा। वह अपने दरवाजे पर चुप-चाप अकेले उदास खड़ी थी।
मैंने गाड़ी का पिछला दरवाजा खोला और वह गाड़ी के अंदर बैठते ही मेरी पत्नी के गले से लिपट गयी। अपने आँचल में वह कुछ पोटली के जैसा बांधे हुए बड़े जतन से उसे पकड़े बैठी हुई थी। गाड़ी अब तक मुख्य सड़क पर पहुँच गई थी। मैंने अपनी पुरानी आदत के अनु रूप माया को चिढाते हुए कहा -" भौजाई सब पूरा खोइछा देले बा लोग ।"
लेकिन,यह क्या माया अचानक से रो पड़ी और आँचल में बंधी पोटली को माथे से लगाते हुए बोली - " विनोद भैया ! ई घर के दरवाजा के आगे के माटी ह का पता अब ई गाँव में कभी आयेम कि ना।