मेरी बेटी निर्मोही नहीं है

प्यार में सब जायज है,

मेरी बेटी निर्मोही नहीं है

“जब देखो किताबों में ही घुसी रहती है। सब जानती हूँ मैं, यह सब आज कल की लडकियों के काम न करने के नये चोंचले हैं। हमने भी पढ़ाई की है, लेकिन मजाल है कभी घर के कामों से जी चुराया हो। देख लेना तुम दोनों, बहुत पछताओगे एक दिन। तेरी बेटी तो निर्मोही है, इसको इतना भी नहीं दिखता कि माँ अकेले सारा काम करती हैं,आकर कुछ मदद कर दे” दिया की दादी जब भी दिया को पढ़ते देखती, अपने बेटे शेखर और बहू विधि को यही ताने देती।

“क्या माँ, रोज-रोज एक ही पुराण लेकर बैठ जाती हो, अभी उसकी उम्र ही क्या, पढ़ लेने दो, जी लेने दो”शेखर ने अपनी माँ को समझाया।

“हाँ माँ, आप बेकार में चिंता करती हैं। समय आने पर सब कर लेगी। अभी अपने घर है, खुल कर जी लेने दो।उसे अपने सपनों को पूरा कर लेने दो। काम का क्या है, वो भी सीख लेगी। मेरी बेटी निर्मोही नहीं है। यह बात एक दिन आप खुद कहेंगी, याद रखियेगा” विधि ने भी अपनी सास को समझाया।

विधि और शेखर के दो बच्चें है, छोटा बेटा यश अभी १०th कक्षा में और बड़ी बेटी दिया इंजीनियरिंग कर रही है। दादी जी को दिया का पढ़ना बिल्कुल भी रास न आता। उनके मुताबिक दिया की अब विवाह कर देना चाहिये। घर के काम, खाना बनाना सब सीखना चाहिये क्यूंकि ससुराल में यही सब करना है।

दिया पढ़ने में बचपन से ही होशियार है।ऐसा नहीं था कि वह घर के काम नहीं जानती। लेकिन सुबह की निकली शाम हो जाती पाठशाला से आते-आते। इसलिये विधि उससे कुछ नहीं कहतीं।

रोज-रोज दादी की चिक-चिक से घर में तनाव का माहौल हो जाता था। उस दिन भी दादी का यही राग शुरू था। अचानक तनाव से शेखर को हार्ट अटैक आ जाता है। विधि चिल्ला कर दिया को बुलाती हैं, दिया जल्दी से अपने पापा को लेकर हॉस्पिटल जाती हैं।

डॉक्टर बताते हैं कि ज्यादा डरने की बाद नहीं है,माईनर अटैक है। लेकिन उनको दो-चार दिन अस्पताल में डॉक्टर की निगरानी में रखना पड़ेगा और कुछ टेस्ट भी करवाने है।

दिया, दादी और यश को घर छोड़ कर वापस विधि के पास हॉस्पिटल आ जाती है। सारी रात विधि और दिया एक-दूसरे को हिम्मत देती रही।

सुबह जल्दी से घर पहुंच कर दिया ने फटाफट सबके लिये नाश्ता बनाया। यश को जबरदस्ती स्कूल भेजा और दादी को लेकर अस्पताल चली गयी। वहां से वापस अपनी माँ को घर आराम करने के लिये ले आयी। जब तक विधि फ्रेश होती हैं, दिया ने भोजन भी तैयार कर लिया।

दिया ने बिना आराम किये अस्पताल और घर दोनों जगह बहुत अच्छे से सम्भाल लिया। शेखर की भी तबियत ठीक हो गयी थी। सभी टेस्ट हो गये, रिपोर्ट भी नॉर्मल थी। डॉक्टर ने आराम करने को कहा और तनाव से दूर रहने को कहा।

दिया शेखर को लेकर घर आ जाती है। दिया की दादी कमरे में आकर शेखर के पास बैठती हैं। उनके आंखों से आज पश्चाताप के आंसू थे। वह शेखर से कहती हैं,” बेटा मुझे माफ कर दे।तेरी इस हालत की जिम्मेदार मैं हूँ। मेरी बेकार की बातों से तेरा दिल दुखा और तेरी यह हालत हो गयी।”

“क्या दादी, आप भी कैसी बातें करती हो। आप ने कोई जानबूझ कर नहीं किया। फिर आप तो हमेशा हम सब का भला ही चाहतें हो। चलो अब यश की तरह रोना बन्द करों। आप ना, डांटते हुए ही अच्छी लगती हो” दिया ने प्यार से दादी के गले में हाथ डाल कर दादी को चुप कराया।

“विधि, तू सच कहती थी ‘मेरी बेटी निर्मोही नहीं है’।समय पड़ने पर दिया ने यश को, मुझे भी, घर और अस्पताल सब अकेले सम्भाल लिया। तेरी और शेखर की परवरिश पर आज के बाद मैं कभी भी कोई रुकावट नहीं बनूँगी। लेकिन… एक बात बताओ, दिया, तुमने खाना बनाना कब सीखा। आज तक मैनें तुझे रसोईघर में सिर्फ खाते ही देखा” दादी ने बड़ी-बड़ी आंखे करके दिया से पूँछा।

“वो मेरा और मम्मी का सीक्रेट है, क्यों मम्मी” दिया प्यार से अपनी माँ के गले लग जती है। यश भी अपने पापा के गले लग जाता है। शेखर अपने घर में खुशी की बहार देख कर तनाव मुक्त हो जाता है।

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