“बेशर्मी या बदतमीजी “

वासना की भूख-“बेशर्मी या बदतमीजी “

अपनी ही बेटी को मैने लड़के को चुंबन करते देख लिया था, एक तरफ मन में गुस्सा था l, दूसरी तरफ मन में ग्लानि की ये क्या देख लिया

मेरी बेटी पढ़ने में काफी होनहार थी, हमेशा क्लास में अव्वल आती थी
अच्छे नंबर आने के कारण उसने बोला पापा मुझे दिल्ली जाकर पढ़ाई करनी है

बेटी की बात पर भरोसा कर के मैने उसे दिल्ली पढ़ने के इजाजत देदी, लेकिन उसकी मां अभी भी कहती हम छोटे शहर से हैं पता नहीं हमारी बच्ची वहां जायेगी तो रह पाएगी नहीं
उसपर मैं उसे बोलता, जबतक जाएगी नहीं तो कैसे पता चलेगा

जब दिल्ली गई कॉलेज में दाखिला हुआ तो उसे कॉलेज की तरफ से हॉस्टल नहीं मिला, और वह एक प्राइवेट हॉस्टल में रहने लगी

उसने बताया कि वहां पढ़ाई का माहौल नहीं बन पा रहा है

तब मैने और पत्नी ने निर्णय लिया कि थोड़ा हाथ दबा कर चलेंगे बेटी को एक अपना कमरा दिला देते हैं

जैसे तैसे कर के मैने एक फ्लैट दिलाया, धीरे धीरे उसमें सभी चीजें जैसे गद्दे पंखे कूलर आदि लगवाए गर्मी पड़ने पर fridge लिया tv लिया, study table लिया

लगभग 6 महीने बाद मैं उससे मिलने उसके फ्लैट पर गया मुझे पता था कि उसकी दोस्ती लडको से भी है और लड़कियों सभी

पर मुझे अपनी बच्ची पर भरोसा था, अकसर उसके दोस्त उसके साथ पढ़ने आते थे, क्यों की वो काफी होनहार थी

लेकिन एक दिन उसका दोस्त आता है और वो कमरे में पढ़ने जाती है मैं किसी काम से नीचे गया था
ऊपर हाल ने गया और मुझे लगा दोनों पढ़ रहे हैं एक गर्म काफी पिला देता हूं

और ये पूछने के लिए जैसे ही मैं कमरे ने घुसा देख दोनो एक दूसरे को गले लगाकर किस कर रहे थे

मुझे देखती ही वो लड़के को दूर कर दी
और लड़का घबरा कर खड़ा हो गया,

मैं आत्मग्लानि में चूर था ये सोचकर कि ये मैने क्या देख लिया
मैने सिर नीचे क्या और सॉरी बोलते हुए बाहर आया
मेरे अंदर गुस्सा भी था और आत्म ग्लानि भी

समझ नहीं आया था जवान होती लड़की के निजीपल को इस तरह देखना सही था नहीं

और मन में गुस्सा भी था कि जिस बेटी पर आंख बंद कर के भरोसा किया वो ऐसे कर रही ही
हालाकि उसकी अपनी जिंदगी भी है इस लिए मुझे गुस्से से ज्यादा ग्लानि हो रही थी

तभी गुस्से में लाल मेरी बेटी आती है, और बोलती है पापा ये क्या तरीका है, ?

मैं हैरान था, और बोला तरीका?

उसने कहा हां तरीका, किसी के कमरे में आने से पहले knok कर के आना चाहिए ये बेसिक बात है

मैने बोला हां आना तो चाहिए बेटा लेकिन मुझे ध्यान नहीं था, क्यों की हमने कभी अपने घर में ऐसा किया नहीं

उसने तुरंत बोला पापा आपने अपने घर में नहीं किया पर ये मेरा घर है मेरा स्पेस है, आखिर मेरी भी कोई प्राइवेसी है या नहीं

मैने बोला हां बेटा गलती हो गई आगे से ध्यान ध्यान रखूंगा

और इसके बाद वो अपने कमरे में वापस चली गई उसका दोस्त अपने घर चला गया

और मैं सोफा पर बैठा था

तभी मेरी नजर पंखे पर गई दीवारों पर गई, घर में रखे fridge पर गई, कंप्यूटर पर गई, गई चूल्हे पर गई

और मैने सोचा मैने और पत्नी ने अपना पेट काट कर बेटी को दूसरी गृहस्ती बसाई
देखा जाए तो एक एक समान मेरा है घर का किराया मै दे रहा हूं, फिर मेरी बेटी ये कैसे कह सकती है ये उसका घर है

खैर उसकी बात ने मुझे हिला के रख दिया और मैने अपना समान बांध और जाने लगा,

उसने समान देखा और बोल पापा कहा जा रहे हैं

मैने बोला अपने स्पेस में जा रहा हूं, जहां मुझे कहीं आने जाने के लिए knock नहीं करना पड़ता

वो समझ गई थी कि मुझे उसकी बात बुरी लगी

और मैं वापस आगया,

समय के साथ बच्चे बड़े होते हैं उन्हें उनका स्पेस देना चाहिए,
लेकिन वहीं बच्चे ये कैसे भूल सकते हैं कि हम मां बाप अपना पेट काटकर उन्हें सब कुछ देते हैं, और बदले में उसने सिर्फ थोड़ा सा समय और इज्जत चाहते हैं

मेरे संस्कारों में कोई कमी नहीं थी, फिर ऐसा क्यों

इसका जवाब मिला मुझे आजकल हमारे संस्कार पर सोशल संस्कार भारी पड़ रहे हैं, जैसे मोबाइल।में आने वाली रील जिसमें हर वीडियो में सिर्फ स्वार्थ के बारे में बताया जाता है l
हर वेबसेरेज जिसमें बच्चे मां बाप से दूर रहे तो ज्यादा खुश रहेंगे

ये हैं दूसरे संस्कार जो हमारे संस्कार पर भारी पड़ रहे हैं

कैसी लगी स्टोरी अच्छी लगी तो लाइक करे कॉमेंट्स करे
Everone @topfans

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