शुरू कहीं से भी हों बातें ख़त्म मुस्कुराहटों पर हो
शुरू कहीं से भी हों बातें
ख़त्म मुस्कुराहटों पर होनी चाहिए
दिल की बंजर जमीं आँखों में नमी
मुहब्बतों की बरसात होनी चाहिए
में तुम्हें चाहूं तो ही तुम मुझे चाहो
ये व्यापार बन्द होना चाहिए
गले लगते ही भूल जाएँ गिले शिकवे
एक दौर ऐसा भी होना चाहिए
अजनबियों की बस्ती में चैन कहाँ
कुछ देर ख़ुद के साथ भी रहना चाहिए
छोटी छोटी बातों में ख़ुशियाँ ढूँढ
गई बीती बातों पर चुप रहना चाहिए
दूरियों का ताल्लुक़ फ़ासलों से नहीं
नज़दीकियों का अहसास होना चाहिए
कल क्या हो कुछ भी ख़बर नहीं यारो
एक पल में सदियों का मज़ा लेना चाहिए

एक अल्हड़ लड़की से एक परिपक्व औरत बनने तक के सफर में कितना कुछ खोती है हम स्त्रियां
बचपन का वो खेल छूट जाता है
बाबुल का अंगना छूट जाता है
छूट जाती है वो बचपन की सहेलियां
वो मस्ती
बस यादें रह जाती है उनकी खासकर तब जब आप विवाह करके किसी अन्य शहर में बस जाए।
नए आंगन में धीरे धीरे रमने के चक्कर में खुद को भूल ही जाती हैं
कहीं किसी को बुरा ना लगे , कोई नाराज ना हो जाए बस जिंदगी इसी से शुरू होकर इसी पर खत्म हो जाती है
कितनी भी कोशिश कर ले पर कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ छूट जाता है या कहूं इतनी कोशिशों के बाद भी घरवालों को कोई ना कोई गलती नजर आ ही जाती है ।
सास ससुर की सेवा , पति का ख्याल
छोटे देवर नंदों का भार या घर की बड़ी बहू होने का दवाब इस कदर हावी हो जाता है के खुद की कोई फिक्र ही नही रहती
परिवार बड़ने लगे तो बच्चो के साथ खुद को व्यस्त कर लेती है
कभी कभी सोचती है के काश वो पहले वाला समय उसे फिर मिल जाए
मिल जाए फिर वही बचपन का जमाना
वो संगी साथी पर बस सोचती ही रह जाती है
अपने मां बाप से मिलने के लिए भी हजार बार सोचना पड़ता है , सबकी इजाजत लेनी पड़ती है
सारी वयवस्थाए जमानी पड़ती है क्योंकि घर भी सुचारू तरीके से चलते रहना चाहिए
जो घर का केंद्र बिंदु है वही घर में पड़े एक सामान से ज्यादा कुछ नहीं होती
कुछ वक्त मांग ले खुद के लिए तो सब ऐसे देखते है जैसे कोई पाप कर दिया हो
आदमियों का क्या है वो तो कभी कहीं जाते नही अपना घर छोड़ कर शादी कर के
सिर्फ जिंदगी में आगे बड़ने के लिए जाते है अपने शहर से दूर
उनका जब मन हो अपने दोस्तो से मिल लेते है
कभी टेंशन कम करने के लिए मिलना होता है तो कभी मौज मस्ती के लिए
पर कभी सोचिए क्या हम स्त्रियों को टेंशन नहीं होती
हमारा भी मन करता है घर की चारदीवारी से निकलने का
कभी कोई बचपन का साथी मिल जाए तो उससे दो बातें कर लेती है और बाद में चरित्रहीन बन जाती है
पुरुष किसी महिला मित्र से मिले काम करे तो वो चरित्रवान
क्यों महिला का कोई पुरुष मित्र नही हो सकता
कान्हा जी भी थे द्रौपदी के सखा
उनका हर सुख दुख बाट लेते थे
हम स्त्रियों के जीवन में क्यों कोई कान्हा नही हो सकता
हमे भी खुल कर जीने की आजादी चहिए
कभी तो खुद से कहो अपने घर की औरतों को की जाओ जो मन हो करो
जहां दिल हो घूमो
मैं बस इतना ही कहूंगी के सबके सपने पूरे करते करते जो हमारे सपने अधूरे रह गए है हमे उनके बारे में भी अब सोच लेना चाहिए
सब कहते है कमाई का एक हिस्सा जरूर निवेश करना चाहिए ताकि अपना भविष्य बेहतर बना सके ठीक उसी तरह हमे भी खुद को वक्त देना चाहिए ताकि हम खुश रह सके क्योंकि हम खुश तो सब खुश
जिसको जो बोलना है बोलने दीजिए पर एक बार अपने मन की जरूर करिए
जिंदगी का क्या भरोसा
आज है और कल…..
इससे पहले हम भी आज से कल में आ जाए
जी ले अपनी जिंदगी