सुहाना सफर – पार्ट-1
मुझे अचानक एक फंक्शन में दिल्ली जाना था पति से ट्रेन में रिजर्वेशन के लिए बोली मगर उसके बस का तो जैसे कुछ है ही नही।
किसी तरह रात को 10 बजे एक स्लीपर बस मिली मगर उसमे भी सीट न के ही बराबर थी। कंडक्टर ने बोला मैडम सीट एक है लेकिन प्रॉब्लम ये है कि वो शेयरिंग करनी पड़ेगी वो भी गाड़ी के एकदम पीछे ऊपर की बर्थ थी

जिसमे एक आदमी ऑलरेडी बैठा था। मैं बस में चढ़ तो गयी थी मगर असमंजस में थी। गाड़ी चलने लगी थी मैं बोली आगे कोई सीट खाली नही होगी तो वो बोला मैडम सब दिल्ली के लिए ही बुक है।
मैं पसीने से लतपथ थी तो कंडक्टर की सीट पर ही बैठ कर माथे का पसीना पोछते हुए बोली
मैं क्या पीछे की सीट देख सकती हूँ
कंडक्टर मुझे लेकर लास्ट वाली सीट पर गया और पर्दा हटा के दिखाया तो एक अधेड़ उम्र के आदमी मोबाइल में रील देखते हुए हड़बड़ी में उठे बनियान पहने हुए हटे कटे शरीर वाले और मुझे ऊपर से देखते हुए देखते ही रह गए

क्योंकि मेरे पल्लू के अंदर ब्लाउज में बने क्लीवेज पर लाइट की रोशनी में उन्हें कुछ दिख रहा था ।
तभी कंडक्टर ने बोला मैडम क्या आप एडजेस्ट कर सकती है और आदमी से भी बोला सर मैडम को सीट चाहिए क्या आप शेयर कर सकते है।
मेरे लिए हां कहाँ तो मुश्किल था लेकिन उन्होंने तो तुरंत हां बोल दिया।
थोड़ी देर सोचने के बाद मैं भी बोली ठीक है मेरा समान इधर रखवा दो और फिर वो चढ़ने के लिए सीढ़ी ले आया।
चढ़ने के दौरान मेरा पल्लू अस्तव्यस्त हो चुका था
स्लीवलेस ब्लाउज से ब्रा साइड में खिसकर दिख रही थी

मैं अपने सामान को व्यवस्थित करने के लिए झुक कर नीचे देखने लगी तो जैसे सरकने वाली थी तभी मैं कुछ पकड़ने की कोशिश में मेरा हाथ उनके उनके बनियान में अटका और मेरे नाखुनो ने उनके सीने को घायल करते हुए किसी तरह खुद को संभाली।