सेक्स ओर आदमी

सेक्स ओर आदमी

सेक्स ओर आदमी

आदमी सेक्स को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है पशुओं की तो सेक्स की कोई अवधि होती है कोई पीरियड होता है वर्ष में आदमी की कोई अवधि न रही कोई पीरियड न रहा।

आदमी चौबीस घंटे बारह महीने सेक्सुअल है सारे जानवरों में कोई जानवर ऐसा नहीं है कि जो बारह महीने और चौबीस घंटे कामुकता से भरा हुआ हो। उसका वक्त है उसकी ऋतु है वह आती है और चली जाती है। और फिर उसका स्मरण भी खो जाता है।

आदमी को क्या हो गया?
आदमी ने दबाया जिस चीज को वह फैल कर उसके चौबीस घंटे और बारह महीने के जीवन पर फैल गई है।

कभी आपने इस पर विचार किया कि कोई पशु हर स्थिति में हर समय कामुक नहीं होता। लेकिन आदमी हर स्थिति में हर समय कामुक है। जैसे कामुकता उबल रही है
जैसे कामुकता ही सब कुछ है।

यह कैसे हो गया?
यह दुर्घटना कैसे संभव हुई है?
पृथ्वी पर सिर्फ मनुष्य के साथ हुई है
और किसी जानवर के साथ नहीं क्यों?

एक ही कारण है सिर्फ मनुष्य ने दबाने की कोशिश की है। और जिसे दबाया,
वह जहर की तरह सब तरफ फैल गया।

और दबाने के लिए हमें क्या करना पड़ा?
दबाने के लिए हमें निंदा करनी पड़ी दबाने के लिए हमें गाली देनी पड़ी दबाने के लिए हमें अपमानजनक भावनाएं पैदा करनी पड़ीं।

हमें कहना पड़ा कि सेक्स पाप है।
हमें कहना पड़ा कि सेक्स नरक है।
हमें कहना पड़ा कि जो सेक्स में है
वह गर्हित है निंदित है।
हमें ये सारी गालियां खोजनी पड़ीं
तभी हम दबाने में सफल हो सके।

और हमें खयाल भी नहीं कि इन निंदाओं और गालियों के कारण हमारा सारा जीवन जहर से भर गया।

नीत्शे ने एक वचन कहा है
जो बहुत अर्थपूर्ण है। उसने कहा है कि धर्मों ने जहर खिला कर सेक्स को मार डालने की कोशिश की थी।
सेक्स मरा तो नहीं सिर्फ जहरीला होकर जिंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन और गड़बड़ हो गई बात।
वह जहरीला भी हो गया और जिंदा है।

यह जो सेक्सुअलिटी है यह जहरीला सेक्स है। सेक्स तो पशुओं में भी है काम तो पशुओं में भी है क्योंकि काम जीवन की ऊर्जा है लेकिन सेक्सुअलिटी कामुकता सिर्फ मनुष्य में है।

कामुकता पशुओं में नहीं है।
पशुओं की आंखों में देखें वहां कामुकता दिखाई नहीं पड़ेगी। आदमी की आंखों में झांकें वहां एक कामुकता का रस झलकता हुआ दिखाई पड़ेगा।
इसलिए पशु आज भी एक तरह से सुंदर है।

लेकिन दमन करने वाले पागलों की
कोई सीमा नहीं है कि वे कहां तक बढ़ जाएंगे।

पत्नी और प्रेमिका मैं तुलना करना ही गलत है

क्योंकि यह दोनों हिस्से एक ही औरतों के हैं पत्नी प्रेमिका बनना चाहती है और प्रेमिका पत्नी
लेकिन मर्दों ने इन्हें दो हिस्सों में बांट दिया जिससे पत्नी भी अधूरी रही और प्रेमिका भी रही बात सहन करने की तो दोनों ही सहन करती हैं क्योंकि पत्नी के पास अधिकार होता है तो प्यार नहीं और प्रेमिका के पास प्यार होता है पर अधिकार नहींं ✍🏻😍

यूँ कस के हांथ थामे रखना, कि मैं लड़खड़ाती बहुत हूँ। खुद ही पूछ लेना हाल मेरा, कि तुमसे छुपाती बहुत हूँ।
जानते हो ना, भीतर समंदर छुपाए, मैं मुस्कुराती बहुत हूँ।…..😊

शायद तेरी मेरी कहानी अधूरी रह जाएगी
हमारे इश्क़ की दास्तां यहीं दफन हो जाएगी

लगाएगी ये दुनिया हम पर हजारों बंदिशें लेकिन
हमारी प्रेम कहानी फिर भी अमर हो जाएगी

कुछ पल ही बिता पाएंगे एक दूसरे के साथ
फिर जिंदगी पता नहीं किस मोड़ पर ले आएगी

ना तू मेरे साथ, ना मैं तेरे साथ
एक दूसरे की कमी हमें बहुत सताएगी

लेकिन तू बेफिक्र होकर मुझ पर विश्वास करना
मेरे दिल में तेरी जगह किसी को ना मिल पाएगी

अभी तो हजारों रंग बदलेगी ये ज़िन्दगी
ना तू मुझे भूलना, ना मैं तुझे
ऐसे ही एक दूसरे की याद के साथ
जिंदगी गुजर जाएगी

सकी मोहब्बत को इस कदर निभाते हैं हम…

वो नहीं है तकदीर में फिर भी उसको चाहते हैं हम…!!!!

रिश्ते तो बस नाम की बातें हैं, प्यार तो बिना नाम के होता है,
जो दिल से निभाए, वही सच्चा साथी होता है।
खास होते हैं वो, जो दिल की गहराइयों से प्यार करते हैं,
बिना कहे समझते हैं, बिना रिश्ते के ही सब कुछ सहते हैं। 💕

उफ्फ वो तेरी यादें
वो हसीन मुलाकातें,

बेमौसम बरसातें
वो इश्क की सौगातें,

आहिस्ता तेरा आना
आंखों से मुस्कुराना,

पलकें जरा सा उठाना
देख मुझे तेरा शर्माना ,

तेरा यूँ ही रूठ जाना
फिर मेरा तुझे मनाना,

वो सांझ की गहराई और
एक दूजे में हमारा खो जाना ,
पल बिछड़न का आना
एक टीश सा जाग जाना,

और फिर तन्हाई में
तेरी याद का उमड़ जाना ,

उफ्फ.. फिर नम आंखें मेरी
और तकिए का गीला हो जाना!

“❣️”

ये जून की गर्मी अब बर्दाश्त नहीं होती,

आ जाओ जो मिलने सावन भी लौट आयेंगा….!!!

सदियाँ नहीं संभलती लम्हों से खता करके
ग़ैरत कहाँ बची कभी घुटनों पे दुआ करके
🟣🟣🟣
आए थे तमाशबीन, जलते मकान देखकर
चल दिए हैं सबलोग,कुछ और हवा करके

अब उसका यह ईमान,खुश होना हो तो ले
सबकुछ लुटाके आ गए हम हैं वफा करके

नामवर तो हैं नहीं तमाम शहर पहचाने हमें
आना तो आ जाना अब खुद से पता करके

तस्ब़ीह फिराता रहा दिन रात ऊंगलियों पर
वो शख़्स भी तो मर गया,ख़ुदा ख़ुदा करके

वो भी न पा सका कभी सुकून ज़िंदगी भर
हम भी कहाँ रहे खुश, उसको ख़फ़ा करके
🔵🔵🔵

शादी का शोर थम गया मानसी ने ससुराल की दहलीज़ पर कदम रखा ही था की सास, जेठानी और ननंद ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए। एक तो ससुराल कैसा होता है उसका मिश्र वर्णन मायके में अलग-अलग मुँह से सुन लिया था तो थोड़ी डरी हुई थी

मानसी। पर मायके का दामन छोड़ नये परिवार को अपनाने के लिए मानसी बहुत उत्सुक थी, सास ससुर की सेवा करूँगी, देवर से हंसी मजाक करूँगी, ननद से दोस्ती करूँगी और जेठानी से अपने सुख दु:ख बाटूँगी नये परिवार में दूध में शक्कर सी घुल जाऊँगी।

पहले ही दिन मानसी रात को नाइट गाउन पहनकर पानी लेने रसोई में गई तो सासु माँ तपाक से बोली, ये क्या बहू? हमारे यहाँ बेडरूम के बाहर इस तरह के कपड़े पहनकर बहूएं नहीं घूमा करती आगे से याद रहे। मानसी जी माँजी कहते झट से रूम में चली आई।

बड़ों की बात का मान रखना माँ ने सीखाया था तो चुप रही। और शादी की वजह से कितने दिनों की थकी मानसी घोड़े बेचकर सो गई सुबह आठ बजे नींद खुली तो जल्दी से साड़ी लपेटकर रूम से बाहर निकली।
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