स्त्री
स्त्री साथ कहाँ ….
छोड़ती है……..

वो तो छोड़ देती है…जीना..
सुकून….से बाते..
जागती पलकों में
जाने कितनी राते…
वो छोड़ देती है….
अपना ख्याल…
बच्चों का दुलार…
छोड़ देती हैं रसोई में बनाने
मन पसन्द व्यंजन….
पहनने…मन पसन्द.कपड़े
छोड़ देती..है…चाय की मिठास…
शाम की आस….
सुबह…का….अलसाना…
पूजागृह में इष्ट से बतियाना…
चाय के बहाने करीब आना…
पेड़ पौधों से…नजरें मिलाना..
तुलसी को..जल चढ़ाना..
सासू माँ के पैर…दबाना..
खुद को सजाना…
सोलह ऋंगार निभाना…
पड़ोस में बतियाना..
रिश्तेदारी निभाना..
तुम्हारा..मन….
तुम्हारी साँसें…
तुम्हारा….प्यार…..
सब…बेकार…..
जब टूटता है दिल…
स्त्री…….का…..
फिर भी स्त्री साथ कहाँ छोड़ती है…
जब तक उसमें साँस हैं…
मर मर कर भी खुद में तुझको जिन्दा रखती हैं……
क्यूँकि..जीतना तुम्हारी विरासत है,तुम्हारा पौरूष….
और हारना ही हमारा स्त्र

औरतें जो यह कहती हैं कि पुरूष स्त्री के ज़िस्म का भूखा है तो वे किसी नपुँसक से शादी क्यूँ नहीं कर लेतीं ।
ज़िस्मानी गरमाहट तो दोनों की समान इच्छा है ! किसी एक को दोष देना ठीक नहीं ।
देखा तो यहाँ तक है जब कोई स्त्री एक बार कामेच्छा में घिर जाती है तो पुरुष की अपेक्षा वह जल्दी से स्थिर अवस्था में नहीं आ पाती है विचलित हो जाती है। और अस्त-व्यस्त स्थिति में होती है ।
उस समय सम्भोग की चरम व्यवस्था की कामना करती है । तन-बदन की अग्नि को शान्त करने के लिए ऐसी अवस्था में या तो पुरुष सँसर्ग को ढूंढती है या फिर विवश होकर शीतल जल स्नान कर के अग्नि शान्त करती है।
बहुत-सी औरतें जब यह अग्नि सहन नहीं कर पातीं हैं तो डिप्रेशन का या पागलपन का शिकार हो जाती हैं ।
और फिर कहती है कि पुरूष तो जिस्म का भूखा है….!!!!!
स्त्री में स्त्री के साथ साथ पुरुष गुण समाहित होने पर वो साक्षात लक्ष्मी बन जाती हैं
क्युकी वो अपने घर का बचाव घर के भीतर और बाहर दोनो जगह सफलता पूर्वक संपन्न करती हैं
वो गृह विज्ञान के साथ -साथ अर्थशात्र में भी पारंगत हो जाती हैं
किन्तु कुछ कुण्ठित पुरुष ऐसी स्त्रियों से जलना प्रारम्भ कर देते हैं और घर बाहर,वक्त- बेवक्त बजाये स्त्री का सम्मान करने के वो अपमान करना प्रारम्भ कर देते है।
असफल पुरुष इस प्रकार का कार्य करे तो समझ में आता है किन्तु कई बार सफ़ल पुरुष भी महिला को चारों तरफ से मिल रही सफलता को पचा नहीं पाते और इस प्रकार के घ्रणित कार्य करते हैं कि समाज में उस महिला को तो हास्य का पात्र बनाते ही हैं
साथ ही स्वंय भी समाज में अपमानित होते हैं।। ऐसे लोगों को मनोविज्ञान में मानसिक रोगी कहा गया है, इस प्रकार के लोगो के गिरने की कोई सीमा नहीं होती है ऐसे लोग कुकृर्त्य द्वारा लोगो का ध्यान स्वंय की ओर खीचने का प्रयास करते हैं ।।
इनसे बचने का सीधा सा उपाय है कि इनको इनके हाल पर अकेला छोड़कर जीवन में आगे बढ़ जाये ..कभी भूलकर भी इनके साथ रहने या पास जाने या किसी समायोजन की चेष्टा ना करे क्युकी इस प्रकार के मनोरोगी को यदि आप अपना सर भी कलम करके दे दोगे ..
तब भी ये लोग आपसे इर्ष्या और घृणा ही करेगे …