स्त्री श्रृंगार क्यों करती हैं

स्त्री श्रृंगार क्यों करती हैं

स्त्री श्रृंगार क्यों करती हैं

((स्त्री श्रंगार ही इसीलिए करती है कि खूबसूरत दिखे और लोग उसकी सराहना और तारीफ करें…. घूरती नज़रों की नज़र और नज़रिए से ही अंदाजा लग जाता है कि पुरूष सम्मान दे रहा है या…..))
स्त्री तो स्त्री है…
क्या मेरे घर की…क्या तेरे घर की..✍️
—यहां बात उनकी हो रही है जो राह चलती हर स्त्री को घूरते और छींटाकशी करते हैं—

लाख टके की बात कोई नही देगा साथ तेरा यहाँ हर कोई यहाँ खुद ही में मशगुल है जिंदगी का बस एक ही ऊसुल है यहाँ तुझे गिरना भी खुद है और सम्हलना भी खुद है.. तू छोड़ दे कोशिशें… इन्सानों को पहचानने की तू छोड़ दे कोशिशें.. इन्सानों को पहचानने की…
यहाँ जरुरतों के हिसाब से .. सब बदलते नकाब हैं…! अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर. हर शख़्स कहता है- ज़माना बड़ा खराब है।….👍

कभी कभी…….
कोई रिश्ता
वैसा नही होता

जैसा आप चाहते है
वो छलता है आपको,
आप समझ कर भी..
नजरंदाज कर जाते हैं

हर बार हारते हो उससे,
फिर भी हार नही मानते हो
जुड़े रहते हैं,
उस रिश्ते से
उस इंसान ‌से

ये प्रेम नही
लगाव‌ नही
जिद्द‌ है
हम मान‌ ही नही पाते,
रिश्ता खत्म हो चुका है
अड़े रहते ‌हैं
एक जिद्द‌ पर
तब तक..
जब तक टूट कर ,
क़तरा क़तरा बिखर नही जाते हैं

कुछ…
इस तरह,
अपनी जिद्द से खुद ही…
छल‌‌ लिए जाते ‌हैं !!

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